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होगा। यास्कका निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिसे शिथिल है। अर्थात्मक आधार उसका उपयुक्त है। द्वितीय निर्वचन जिसमें रेशयत् + दृ विदारणे धातुका योग माना गया है, अर्थात्मक महत्त्व रखता है। लौकिक संस्कृतमें इस शब्दका प्रयोग उक्त अर्थ में प्रायः नहीं देखा जाता है।
(९१) आय्यम् :- इसका अर्थ होता है प्राप्य । निरुक्त के अनुसार आप्यमाप्नोतेः ५२ अर्थात् यह शब्द आप्लृ व्याप्तौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार अप् +अण् + ष्यञ् प्रत्यय कर आप्यम् शब्द बनाया जा सकता है।
(९२) सुदत्र :- इसका अर्थ होता है कल्याणके लिए दान देने वाला। निरुक्तके अनुसार- सुदत्रः कल्याणदानः ५२ अर्थात् सुदत्रः शब्दमें दो पद खण्ड हैपूर्व पदस्थ सु कल्याणका वाचक है तथा उत्तर पदस्थ दत्र शब्द दा दाने धातुके योगसे निष्पन्न है। यह दत्र दानका वाचक है। सु + दा =सुदत्रः । इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत
माना जायगा ।
(९३) सुविदत्र :- इसका अर्थ होता है- कल्याणकारी विद्यासे युक्त । निरुक्त के अनुसार- सुविदत्र: कल्याणविद्य : ५२ इसके अनुसार सुविदत्र शब्दमें सु + विदत्र दो पद खंड हैं। सु कल्याण का वाचक है जो पूर्वपदस्थ है। उत्तरपदस्थ विदत्रमें विद् ज्ञाने धातुका योग है सु + विद् = सुविदत्रः । इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा ।
(९४) आनुषक् : यह आनुपूर्व्यका वाचक है। निरुक्तंके अनुसार-आनुषगिति नामानुपूर्वस्य, अनुषक्तं भवति५२ अर्थात् एक दूसरे से जुड़ा होने के कारण आनुषक् कहलाता है। इसके अनुसार इस शब्दमें अनु+सअ संगे धातुका योग है- अनु + सञ् आनुषक्। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार आ + अनु + षञ् + क्विप् प्रत्यय कर आनुषक् शब्द बनाया जा सकता है।
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(९५) तुर्वणि:- इसका अर्थ होता है प्रदान करने वाला, या शीघ्र व्याप्त करने वाला/निरुक्तके अनुसार-तुर्वणि: तूर्णवनि: ५२ इस निर्वचनमें तुर् तूर्णका वाचक है तथा वन् सेवायां शब्दे च धातुके योगसे तुर्वणिः शब्द निष्पन्न हुआ है-तुर (तूर्ण) + वन् +इन् =तुर्वणि: |अर्थ होगा शीघ्र देने वाला। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार
३६१ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क