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(19) सिकता:- इसका अर्थ बालु, चीनी आदि होता है। यह शब्द कस् विकसने धातुसे बनता है। कस् के आद्यन्त विपर्यय होने पर सिकता बना है। यह निर्वचन प्रक्रियाके अनुकूल है। इसका अर्थात्मक महत्त्व अधिक है। इसमें ध्वन्यात्मकता आंशिक है। व्याकरणके अनुसार षिच्क्षरणे+अतच् प्रत्यय करने पर सिकता शब्द बनता है।"
(20) तर्क:- तर्कुका अर्थ चाकू होता है। यह कृती छेदने धातुसे बनता है चाकूमें कर्तन कर्म सुरक्षित है । कृत् धातुको आद्यन्त विपर्यय करने पर कृत्+उ, कर+त+उ तर क+उ - इसका अर्थात्मक आधार पूर्ण उपयुक्त है। निर्वचन प्रक्रियाके अनुकूल होनेसे इसे भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे भी उपयुक्त माना जायगा । यद्यपि इसमें ध्वन्यात्मकता की पूर्ण रक्षा नहीं है। भारोपीय अन्य भाषाओंमें भी इस प्रकारका परिवर्तन देखा जाता है। व्याकरणके अनुसार इसे कृत्+उः प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। कृत् धातु से कट अंग्रेजी में भी सुरक्षित है।
(21) ओध :- ओधका अर्थ समूह या बाढ़ होता है । यह शब्द वह प्रापणे धातुसे बनता है। इसमें वधातुके अन्त्याक्षर है काध में परिवर्तन हो गया है। साथ ही साथ इसका आद्यक्षर व का सम्प्रसारण होकर उ हो गया है वह-उ-अ-घ, अ-उ-घ- ओधः । अंतिम अक्षर ह का घ में परिवर्तन अन्य शब्दों में भी पाया जाता है-मिह-मेधः । इसका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार इसे उच् समवाये+धञ् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है।
(22) मेघ:- मेघका अर्थ बादल होता है । मेहतीति सतः यह शब्द मिह संचन धातुके योग से बना है क्योंकि यह वर्षा कर सींचता रहता है। इस धातुके अन्त्याक्षर ह का घ में परिवर्तन हो गया है। यास्क इस शब्दको अन्त्यवर्ण परिवर्तन (व्यापत्ति) के उदाहारण में उपस्थापित करते हैं। अन्य शब्दोंमें भी धातु स्थित ह का घ देखने में आता है हन-घन, तथा वह् से ओधः इसी प्रकार के उदाहरण हैं । भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे यह निर्वचन, उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार मिह सेचने धातु से अच्” प्रत्यय एवं कुत्व कर मेघः बनाया जा सकता है।
१४८: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क