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हैं। सुविते (नि. ४।५८) के समान इसका निर्वचन नहीं कर मात्र इसके विभिन्न अर्थों को दिखाते हैं। दय् धातु रक्षा, ९६ दान९७ विभाग ९८, जलाना ९९, हिंसा९०० और गति१०१ अर्थोंमें प्रयुक्त होता है। लौकिक संस्कृतमें भी दय् धातु के वे ही अर्थ सुरक्षित हैं। वह (दानगतिरक्षणहिंसा दानेषु) दान, गति रक्षा, हिंसा एवं दान (विभाग) अर्थों में प्रयुक्त होता है।
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(६७) नूचित् : यह एक निपात है । यास्क इसका अर्थ करते हैं - प्राचीन और नवीन। नूचिदिति निपातः पुराणनथयो : नूचेति । ९४ नू च भी निपात है तथा नूचित् के समान ही अर्थ धारण करता है। यास्क निपातोंका अर्थ ही स्पष्ट करते हैं एवं उस अर्थमें उसके प्रयोगका प्रदर्शन करते हैं। वेदोंमें दोनों का प्रयोग इन्हीं अर्थों में प्राप्त होता है। लौकिक संस्कृतमें भी यह निपात आंशिक रूपमें प्रचलित है। नूचित् दो निपातों का समुदाय है। निपातसमुदायका प्रयोग लौकिक संस्कृतमें भी होता है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे पूर्ण उपयुक्त नहीं माना जा सकता।
(६८) रयि: :- रयिः धनका वाचक है। निरुक्तके अनुसार - रयिरिति धननाम रातेर्दान कर्मण:९४ अर्थात् रयिः शब्द रा दाने धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि इसका दान किया जाता है (एक दूसरे को दिया जाता है। धन की प्रथमगति दान ही अभिप्रेत है। १०२ इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार यह संगत है । लौकिक संस्कृतमें भी इसका प्रयोग इसी अर्थ में प्राप्त होता है९०३ वैदिक कालमें यास्कके समयमें लोग धनका उपयोग दान करनेमें करते थे, इस निर्वचन से स्पष्ट हो जाता है। व्याकरणके अनुसार रय् इन् प्रत्यय कर रयिः शब्द बनाया जा सकता है।
(६९) अकूपार :- यह अनेकार्थक है। निरुक्तमें कई अर्थों में इसके निर्वचन प्राप्त हैं :- (१) आदित्योऽप्यकूपार उच्यते । अकूपारी भवति दूरपार : १९४ अर्थात् आदित्यको भी अकूपार कहा जाता है। अकूपारका अर्थ होता है- दूरपार । सूर्य सूर्योदय से सूर्यास्त तक बड़ा रास्ता तय करता है अतः दूरपार होने के कारण आदित्य को अकूपार कहा गया है। इसके अनुसार इस शब्द में अ+ कु + परण् का योग है। अ नञर्थ है तथा कु कुत्सितका वाचक है। जिसका कुत्सित मार्ग नहीं है या कुत्सित गमन नहीं है वह सुन्दर मार्ग वाला अकूपार कहलाता है। (२) समुद्रोऽप्यकूपार उच्यते अकूपारो भवति महापार : ९४ अर्थात् समुद्र को भी अकूपार कहा जाता है क्योंकि समुद्र महापार वाला होता है, विस्तीर्ण पार
२६५ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क