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(१२९) वर्षा :- यह ऋतु वाचक शब्द है। इसका अर्थ होता है प्रावृट् या पावस। श्रावण एवं भाद्रपद मास में वर्षा ऋतु रहती है। निरुक्तके अनुसार-वर्षा वर्षत्याशु पर्जन्य:१४४ अर्थात् इस ऋतुमें मेध जल्दी बरसता रहता है। इस निर्वचनके अनुसार वर्षा शब्दमें वृष् सेचने धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार भी इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार वृष् या वर्ष् धातुसे अच्१९५ प्रत्यय + टाप् प्रत्यय कर वर्षा शब्द बनाया जा सकता है।
( १३०) हेमन्त :- यह ऋतु वाचक शब्द है। अग्रहण एवं पौष मास में हेमन्त ऋतु रहती है। १९६ निरुक्तके अनुसार - हेमन्तो हिमवान १४४ अर्थात् हेमन्त हिमसे युक्त होता है। इस ऋतुमें हिमपात अधिक होता है। इसके अनुसार हेमन्त शब्द में हिम + अन्त शब्द खण्ड है । अन्त मनुष् का बाचक प्रत्यय है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार हन् + झच् = हिरादेश मुडागम एवं गुण करने पर हेमन्त शब्द बनाया जा सकता है । १९७
(१३१) हिमम् :- यह वर्फ का वाचक है। निरुक्तके अनुसार (१) हिमं पुनर्हन्तेर्वा१४४ अर्थात् यह ओषधियों एवं वनस्पतियों को मारता है, जीर्ण कर देता है। १९८ इसके अनुसार इस शब्दमें हन् धातुका योग है। (२) हिनाते व १४४ अर्थात् यह यवादि अन्नको तृप्त करता है। इस ऋतु यवादि अन्न काफी बढ़ते हैं। इसके अनुसार इस शब्द में हि गतौ, वृद्धौ धातुका योग है। दोनों निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार दोनों उपयुक्त माने जायेंगे। व्याकरणके अनुसार हन् हिंसागत्योः धातुसे मक्१९९ प्रत्यय कर या हि गतौ वृद्धौच धातुसे मन्ं २०० प्रत्यय कर हिम् शब्द बनाया जा सकता है।
( १३२) अनर्वम् :- इसका अर्थ होता है जो अन्यत्र न गया हो ! निरुक्तके अनुसार अनर्वमप्रत्यृतमन्यस्मिन् १४४ अर्थात् जो दूसरी जगह गया न हो। इसके अनुसार अनर्वम् शब्दमें न अन् + ऋ गतीं धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार न अ + ऋ गतौ + वनिप् प्रत्यय २०१ कर अनर्व शब्द बनाया जा सकता है।
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(१३३) अर:- इसका अर्थ होता है रथ की नाभि में लगा चक्रदण्ड । निरुक्तके अनुसार- अराः प्रत्यृता नाभौ १४४ अर्थात् ये स्थकी नाभिमें प्रतिगत होते हैं। इस निर्वचनके
२८३ व्युत्पति विज्ञान और आचार्य यास्क