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उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार शम् उपपद् + भू धातु + ड३२ प्रत्यय कर शम्भुः शब्द बनाया जा सकता है। लौकिक संस्कृतमें शम्भु शब्द शंकर, विष्णु, ब्रह्मा, अग्नि, आदिका वाचक है।३३ इन देवताओंमें शंकरके लिए तो शंभु शब्दका प्रयोग हुआ है। अर्थ सादृश्यके आधार पर इन देवताओंके अर्थमें भी शंभु शब्द रूढ हो गया है। शम्भुका शब्दिक अर्थ तथा निर्वचन गत अर्थ होता है - सुख शान्ति प्रदान करने वाला। इस गुणसे युक्त होनेके कारण शंकर आदि शम्भुः कहलाये । इस शब्दका प्रयोग व्यापक अर्थमें पाया जाता है।
(२६) द्रा :- इसका अर्थ होता है - शिकार करने वाला, आखेटक । निरुक्तके अनुसार - व्राः व्रात्याः प्रैषाः १ अर्थात् क्र्त्यासे ब्राः माना गया । व्रात्याः का अर्थ होता है सेवक, नौकर या आखेटक | इस निर्वचनमें धातु प्रत्यय स्पष्ट नहीं है। अर्थ स्पष्ट करनेके लिए व्रात्या शब्दका प्रयोग किया गया है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे यह निर्वचन अपूर्ण है। लौकिक संस्कृतमें इसका प्रयोग प्रायः नहीं देखा जाता।
(२७) वराह :- यह अनेकार्थक है। यास्कने इसका निर्वचन कई अर्थोंमें किया है।१वराहो मेघो भवति।' अर्थात् वराह मेघको कहा जाता है क्योंकि यह श्रेष्ठवस्तु जलको लाता है या श्रेष्ठ वस्तु जल इसका आहार हैं। इसके अनुसार वराहः शब्दमें वर + आहारः, वर + आ + हृ धातुका योग है। ब्राह्मण ग्रन्थों में भी वराह शब्दका निर्वचन मेघके लिए हुआ है -वरमाहारमाहार्षीः इति च ब्राह्मणम् ३४ अर्थात् ब्राह्मण ग्रन्थके अनुसार जल रूप श्रेष्ठ आहारको लानेके कारण वराह कहलाता है । २ वराहका अर्थ शूकर भी होता है-अयमपीतरो वराह एतस्मादेव । वृहति मूलानि । वरं वरं मूलं वृहतीति वा१ मूलों, जडोंको उखाडनेके कारण वराह कहलाता है या यह अच्छे-अच्छे मूलों, जड़ोंको उखाड़ता है इसलिए वराह कहलाता है। शूकरको मुस्ता आदिकी जड़ अधिक प्रिय है। अत: वह उसे उखाड़ता रहता है। उसके अनुसार वराहः शब्द वर + आ + हृ धातुका या वृह् धातुका या वर वृह् वर्हणे धातुका योग है। वर + आ + हृ से बना वराह शब्दका अर्थ होता है श्रेष्ठ मुस्ता आदि मूलोंका आहार करने वाला। वर +आ+ ह = वराहार:- वराहः । अंगिरस गोत्रीयको भी वराह कहा जाते है- अंगिरसोऽपि वराहा उच्यन्ते ।” मध्यम स्थानीय देवतागणं भी वराह कहे जाता हैं। अथोप्येते माध्यमिका देवगणा वराहव उच्यन्ते । यास्क अंगिरस गोत्रीयके लिए वराह तथा मध्यम स्थानीय मरुत् आदि देवताओं के लिए वराहु शब्दका अलगसे निर्वचन नहीं देते। लगता है
२९८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क