________________
पाठमें यद्यपि भस् धातु भर्त्सनदीपयोः अर्थात् निन्दा करना तथा चमकना अर्थमें प्रयुक्त होता है। इससे धातुओंकी अनेकार्थता स्पष्ट है। प्रारंभिक अवस्थामें भस् धातु भक्षण अर्थमें था। कालान्तरमें इसका अर्थ विस्तार या अर्थ परिवर्तन पाया गया। भक्षण अर्थमें भस् धातुसे निष्पन्न शब्द क्षेत्रीय भाषाओंमें उपलब्ध होते है . मगही - भस् - भकोसना, भसकाना (खानेके अर्थमें) आदि। व्याकरणके अनुसार भस् - भस् +ताम् - भ - भस् - ताम् - ब - भस् ताम् - भस् धातु स्थित उपधा लोप बभस- सकारलोप एवं भ् का ब्, त् का ध् कर बब्धाम् बनाया जा सकता है।३।। __(६३) श्मशा :- इसका अर्थ होता है कुल्या तथा नाड़ी। निरुक्तमें दोनों अर्थोमें इसके निर्वचन प्राप्त होते हैं १ - श्मशा शु अश्नुत इति वा५८ यह नदी या कुल्या शीघ्रतासे व्याप्त हो जाती है, फैल जाती है। इसके अनुसार इस शब्दमें शु +अश् व्याप्तौ धातुका योग है। २ - श्म अश्नुते इतिवा अर्थात् नाड़ीके अर्थमें श्मशा शरीरको व्याप लेनेके कारण कहलाती है।८४ इसके अनुसार श्म - (शरीर) +अश् व्याप्ती धातुका योग है। द्वितीय निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार द्वितीय निर्वचनही संगत है। प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिसे शिथिल है। इसका अर्थात्मक महत्त्व है। लौकिक संस्कृतमें इसका प्रयोग उपर्युक्त अर्थमे प्रायः नहीं देखा जाता।
(६४) उर्वशी :- यह अनेकार्थक है। यह अप्सरा विद्युत् तथा स्त्रीका वाचक है। निरुक्तके अनुसार १- उर्वश्यप्सरा, उर्वभ्यश्नुते८५ स्त्रीके अर्थमें वह महान् गुणों से व्यापक होती है। विद्युत्के पक्षमें वह चारों ओर व्याप्त होती है। इसके अनुसार इस शब्दमें उरु +अश् व्याप्तौ धातुका योग है- उरु +अशू उर्वश् +इन् उर्वशिः +डीष् = उर्वशी :। २. ऊरुभ्यामश्नुते८५ स्त्रीके पक्षमें अपनी दोनों ऊरूओं जंघाओं से पुरूषों को व्याप्त कर लेती है८६ या ज्ञान एवं कर्मसे पुरुषों को व्याप्त कर लेती है। विद्युत् के पक्षमें यह दो बड़े-बड़े पदार्थों से व्याप्त होती है, शैत्य एवं उष्ण धाराओं के संयोग से व्याप्त हो जाती है। इसके अनुसार उर्वशी शब्द में ऊरु+ अश् व्याप्तौ धातुका योग है। ३-उरुर्वा वशोऽस्या:८५ स्त्री के पक्ष में इसकी कामना (वशः) महान् होती है या स्त्रीके अधीन गृहकी सारी स्थितियां रहती हैं। विद्युत् के पक्षमें - संसारकी स्थिति प्रायः विद्युत् के वश में है। इसके अनुसार उर्वशी शब्दमें उरु+ वश् -उरुवशी- उर्वशी · उर्वशी। उपर्युक्त सभी निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टि से उपयुक्त हैं। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे
३१० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क