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उपयुक्त माना जायगा। व्याकरणके अनुसार यह सामासिक शब्द है - तूर्णं यानमस्य - तूर्णयान : तौरयाणः।
(७६) अह्रयाण :- इसका अर्थ होता है अशिथिल यान या अशिथिल यानवाला। निरुक्तके अनुसार - अह्रयाणः अह्रीतयान:८५ अर्थात् लज्जासे रहित गमन युक्त स्थ। इसके अनुसार यह शब्द न - अ +ही लज्जायां +यानके योगसे निष्पन्न है। अह्रीतयानसे ही अह्रयाण: शब्द बन गया। अ +ही = अह्र+यान अह्रयाणः। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। माषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। व्याकरणके अनुसार इसे सामासिक शब्द माना जायगा। अहीतं यानमस्य अहयान:।
(७७) हरयाण :- इसका अर्थ होता है (शत्रुओं को) हरण करने वाला यान या शत्रुओंको हराने वाला यानसे युक्त। निरुक्तके अनुसार हरयाणो हरमाणयान:८५ अर्थात् यह शब्द हृ हरणे धातु +मान् +यान से निष्पन्न है- हृ का हर +मान (लोप) +यानः हरयानः हरयाण:। इसमें मतुप, प्रत्यय का लोप हो गया है तथा हृ का हर गुण होकर आया है। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञान के अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। व्याकरण के अनुसार इसे सामासिक शब्द माना जायगा-हरमाणं यानमस्य हरयाणः।
(७८) आस्ति:- इसका अर्थ होता है पहुंचा हुआ। निरुक्तके अनुसार-आरित: प्रत्युतः स्तोमान्८५ अर्थात् स्तोम के लिए गया हुआ। इसके अनुसार इस निर्वचनमें ऋ गतौ धातुका योग है-ऋ यङ् लुक् +क्त =ऋ - अर् +यङ लुक् +क्त आरितः। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे उपयुक्त माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें इसका प्रयोग प्रायः नहीं देखा जाता हैाव्याकरणके अनुसार भी ऋगतौ धातुसे यङ लुक् +क्त प्रत्यय कर आरितः शब्द बनाया जा सकता है।
(७९) बन्दी :- इसका अर्थ होता है-कोमलता से युक्ता निरुक्तके अनुसार - वन्दी वन्दते दुभावकर्मण:८५ अर्थात् यह शब्द मृदु भावार्थक बन्द धातु से निष्पन्न
होता है। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञान ... के अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्रन्द् धातु वैदिक धातु है। लौकिक संस्कृत में इसका प्रयोग प्राय: नहीं देखा जाता।
(८०) निष्षपी :- इसका अर्थ होता है कामी, व्यभिचारी। निरुक्तके अनुसार निष्षपी स्त्री कामो भवति विनिर्गतः सप:८५ अर्थात् यह स्त्री कामी होता है। वह विनिर्गत
३१५ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क