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शब्दमें वृ वरणे धातुका योग है। (ख) विकृत ज्योतिष्कोवा१०९ अर्थात् यह विकृत प्रकाश, ज्योति वाला है। (उष्ण धर्म का विरोधी शीतल किरणों वाला चन्द्र होता है जबकि ज्योति का धर्म उष्णता है। अत: चन्द्रमा विकृत ज्योतिवाला कहा गया) इसके अनुसार इस शब्द में वि +कृ धातु का योग है वि - कृ +ज्योतिष्कः वृकः। (ग) विक्रान्त ज्योतिष्को वा१०९ अर्थात् वह विक्रान्त ज्योतिवाला होता है। अन्य नक्षत्रों की अपेक्षा चन्द्रमा प्रकाशाधिक्य होता है। इसके अनुसार इस शब्द में वि +क्रम् धातु +ज्योतिष्कः का योग है . वि +कम् + ज्योतिष्क: वृकः। वृक: का अर्थ सूर्य भी होता है २आदित्योऽपि वृक उच्यते यदावृक्ते१०९ अर्थात् यह प्रकाश से जगत को आवृत करता है या अन्धकार को दूर भगाता है। इसके अनुसार वृक: शब्दमें वृ वरणे या वृज् वर्जने धातुका योग है। ३. वृकः का अर्थ श्वा (कुत्ता) भी होता है-श्वापि वृक उच्यते। विकर्तणात् अर्थात् कुत्ते में काटने की आदत विशेष है। वह काटता है इसलिए उसे वृक कहा जाता है। इसके अनुसार इस शब्द में वि +कृन्त् कर्तने धातुका योग है - वि +कृन्त = विकृन्त - विकृ = वकृ -वृकः। ४. वृकी का अर्थ वृद्धवाशिनी शिवा (जोर से आवाज करने वाली शिवा) भी होता है क्योंकि वह भी काटती है। इसके अनुसार भी इसमें वि +कृन्त् धातु का ही योग माना जायगा।११० ५. वृकः का अर्थ लांगल (हल) भी होता है- वृको लांगल भवति विकर्तनात्१११ अर्थात् लांगल वाचक वृक भी वि+कृन्त् कर्तने धातुके योगसे ही निष्पन्न होता है क्योंकि वह जमीन को उखाड़ता है। ध्वन्यात्मक आधार किसी भी निर्वचन का उपयुक्त नहीं है। सभी अर्थात्मक महत्व रखते हैं। विकर्तने से वृकः हल, श्वा एवं वृकी से शिवा का बोध होता है जिसमें कर्म सादृश्य का आधार है। लौकिक संस्कृत में वृकः का अर्थ भेड़िया होता है१२ जो कर्म सादृश्य के आधारपर है। व्याकरणके अनुसार वृक आदाने धातु से क: प्रत्यय कर वृक: शब्द बनाया जा सकता है।११३ या वृञ् वरणे धातुसे का प्रत्यय कर वृक़: शब्द बनाया जा सकता है।११४ किंचित ध्वन्यन्तर के साथ यह शब्द भारोपीय परिवारकी अन्य भाषाओं में भी उपलब्ध होता है-संस्कृत-वृक-गाँथि., वुल्फस wolf (र ल का अभेद)। संस्कृतका ऋ वर्ण यूरोपीय शाखाओं में उध्वनि हो गयी है-सं. ऋक्षस् लाँ. Ursus (उर्मुस) सं-कृप-ला. Corpus कार्पस सं. मृत-प्राचीन एवं उच्च जर्मन में Mord (मोद)।११५
(९१) उरण :- यह भेड़ का वाचक है। निरुक्तके अनुसार-उरण ऊर्णावान् भवति।१०९ अर्थात ऊर्णा से युक्त को उरण कहते हैं। भेड़ भी ऊर्णा से युक्त होता है।
३१९ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क