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माना जायगा । आश्रित होनेके कारण श्रयन्तः या श्रायन्तः शब्द माना गया। यह शतृ प्रत्ययान्त शब्द है श्रि +शतृ श्रयन् श्रयन्तः श्रायन्त- आश्रय लिए हुए ।
(५३) ओज :- इसका अर्थ होता है बल, कान्ति आदि। निरुक्तके अनुसार१- ओज ओजतेर्वा२२ अर्थात् यह शब्द उज् वृद्धौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है ।४० यह वृद्धि करने वाला होता है। उज् धातु वैदिक धातु प्रतीत होता है। २- उब्जतेर्वा२२ अर्थात् यह शब्द उब्ज् आर्जवे धातुके योगसे निष्पन्न होता है। इन निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इन्हें संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार उब्ज् आर्जवे धातुसे असुन् प्रत्यय कर ओजस् शब्द बनाया जा सकता है । ४१ ओजका अर्थ प्रकाश, दीप्ति आदि भी होता है । ४२
(५४) आशी :- यह अनेकार्थक है। आशी : का अर्थ आशिर होता है- आशीराश्रयणाद्वा अर्थात् इसका सेवन किया जाता है। इसके अनुसार इस शब्दमें आङ् श्रिञ् सेवायां धातुका योग है। २- आश्रपणाद्वा अर्थात् उसे पकाया जाता है! अतः इसके अनुसार इस शब्दमें आङ् + श्रीञ् पाके धातुका योग है। आशी : का अर्थ आशीर्वाद भी होता है ३- अथेयमितराशीराशास्ते अर्थात् आशीर्वाद वाचक आशी : शब्द आङ् +शास् इच्छायां धातुके योगसे निष्पन्न होता है। इस प्रकार प्रथम निर्वचनमें आङ् + श्रिञ् + क्विप् = आशीः, द्वितीयमें आङ् + श्रीञ् पाके + क्विप् = आशी : तथा तृतीयमें आङ् + शास् इच्छायां क्विप् = आशी : शब्द है। सभी निवर्चनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे इन्हें उपयुक्त माना जायगा । व्याकरणके अनुसार आङ् +शास् + क्विप् + ईत्व = आशी: शब्द बनाया जा सकता है लौकिक संस्कृतमें आशी: आशीर्वाद एवं सर्पदंष्ट्र४३ के लिए प्रयुक्त होता है। वेदमें आशिर या आशीर मिश्रत दुग्ध को कहते हैं। (आशीरके तीन प्रकार होते हैं १- यवाशिर, २दध्याशिर एवं सोमाशिर। इन सबोंमें दुग्धके साथ क्रमशः यव, दघि एवं सोमका विशेष मिश्रण होता है। ये सभी विशेष पद्धतिसे पकाये भी जाते हैं)।
(५५) अजीग :- यह अनेकार्थक है। निरुक्तकें अनुसार - अजीग :: ज़िगर्तिर्गिरति कर्मा वा२२ अर्थात् यह शब्द निगरणार्थक गृ धातुके योगसे निष्पन्न होता है। इसके अनुसार इसका अर्थ होगा -खाता है, निगरण करता है। २- गृणाति कर्मा वा२२ अर्थात् यह शब्द गृ स्तुतौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है। इसके अनुसार इसका अर्थ होगा करता है। ३ गृहह्णाति कर्मा वा२२ अर्थात् अजीग शब्द ग्रह उपादाने धातुके
३५ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क