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(११८) काकुदम् :- इसका अर्थ होता है तालु। निरुक्त के अनुसार १-काकुदं तालु इत्याचक्षते। जिह्वा कोकुवा सास्मिन् धीयते१०९ अर्थात् जिह्वाको कोकुवा कहा जाता है। वह जिह्वा (कोकुवा) जिसमें रखी जाती है उसे काकुदम् कहा जायगाकोकुवा +धा - कोकुध-काकुध-काकुद।.२. कोकूयमाना वर्णान् नुदतीतिम१०९ अर्थात् वह कोकुवा शब्द करती हुई वर्गों के लिए तालु को प्रेरित करती है।५३ अतः कोकुवा+नुद् प्ररणे धातु से काकुदम् बना। कोकुवा + नुद्-कोकु नुद्-काकुद। प्रथम निर्वचन का ध्वन्यात्मक तथा अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से इसे संगत माना जायगा। काकुद शब्द का प्रयोग तालु के अर्थ में तौकिक संस्कृत में भी होता है। यास्कका द्वितीय निर्वचन अर्थात्मक महत्व रखता है। इसमें ध्वन्यात्मक शैथिल्य है। व्याकरणके अनुसार काकुदे भवं काकुदं-ककुद +अण्५४ काकुदम् बनाया जा सकता है। अथवा का ईषत् कुशब्दे + ६ः प्रत्यय कर काकुद शब्द भी बनाया जा सकता है।
(११९) कोकुवा :- यह जिह्वाका वाचक है। निरुक्तके अनुसार कोकुवा को . कूयतेर्वा स्याच्छब्दकर्मण:१०९ अर्थात् यह शब्द करना अर्थ रखने वाले कुधातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि जिह्वा की सहायता से ही शब्द किया जाता है। लौकिक संस्कृत में काकु का अर्थ जिह्वा होता है।५५ वैदिक काल का कोकुवा शब्द ही लगता है लौकिक संस्कृत में काकु बन गया है जो वर्ण लोप एवं ध्वनिपरिवर्तन का परिणाम है। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। व्याकरण के अनुसार कुङ् शब्दे + यङ्लुक +अच् प्रत्यय कर कोकुय कोकुवा शब्द बनाया जा सकता है।
(१२०) जिला :- यह जीमका वाचक है। निरुक्तके अनुसार जिह्वा जोहुवा।१०९ अर्थात् इससे लोग अपने अन्दर अन्न का हवन करते हैं जिह्वा से अन्न उदर में डाला जाता है।५६ इसके अनुसार इस शब्द में हु दानादनयोः धातुका योग है हु दानादनयो. + यङ्लुक् जोहुवा-जिह्वा। आह्वयतीतिवा१०९ अर्थात् हृञ् शब्दे धातु से जिह्वा शब्द निष्पन्न होता है क्योंकि लोग इससे शब्द करते है-१५७ हृञ् +यङ्लुक् = जोहुवाजिह्वा। इन निर्वचनों का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। माषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार लिह आस्वादने धातुसे वन् (लकार का जकार) = जिह्वा शब्द बनाया जा सकता है।१५८
(१२१) तालु :- यह उच्चारणांग विशेष है। इ, चवर्ग य तथा श वर्णों के
३२७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क