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जूर्णि: शब्द सेनाका वाचक है क्योंकि वह गति करने वाला या हिंसा करने वाला होता है। प्रथम निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। द्वितीय एवं तृतीय निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्व है। भाषा विज्ञानके अनुसार ज़ वयोहानौ धातुसे नि प्रत्यय कर जूर्णि: शब्द बनाया जा सकता है। व्याकरण के अनुसार ज्वर् धातु से निः प्रत्यय कर जूर्णिः शब्द बनाया जाता है।२१
(३७) ओमना :- इसका अर्थ होता है रक्षा करनेके लिए। ओमना अवनाय१ अर्थात् यह शब्द अव् रक्षणे धातुके योगसे निष्पन्न होता है। अव रक्षणे धातु के व को ऊ करने पर अ + ऊ = मन् = ओमन् ओमना शब्द बनता है। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार- अव् +मनिन् प्रत्यय कर ओमन्- तृ.ए.व. ओमना शब्द बनाया जा सकता है।
(३८) उपलप्रक्षिणी :- इसका अर्थ होता है-सक्तकारिका, सक्त बनाने वाली। निरुक्तके अनुसार- उपलप्रक्षिणी उपलेषु प्रक्षिणाति२२ अर्थात् प्रस्तरों पर अन्नको कूटने वाली। इसके अनुसार इस शब्दमें उपल +प्र + क्षि धातुका योग है। २. उपलप्रक्षेपिणी वा२२ अर्थात् बालुओंमें अन्नको डालने वाली। इसके अनुसार इस शब्दमें उपल + प्र + क्षिप प्रेरणे धातुका योग है। उपल+ प्र +क्षिप् =उपलप्रक्षिणी। यह सामासिक शब्द है। इन निर्वचनोंसे स्पष्ट होता है कि पहले अन्नको कूटा जाता है तदन्तर उसे भूजा जाता है और अन्तमें पीसने पर सक्तुका निर्माण होता है। दुर्गाचार्य प्रथम निर्वचनका अर्थ अन्न कूटना, भूनना तथा पीसना मानते हैं जो सबब निर्माणके तीन प्रमुख संस्कार हैं।२३ यह निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिसै उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार भी इसे संगत माना जायगा। वैदिक अन्नोंमें जौ सर्वाधिक प्रसिद्ध रहा है। जौ से सक्त बनाने में अभी भी कूटना, भूनना तथा पीसना तीन संस्कार निहित है।
(३९) कारू :- इसका अर्थ होता है स्तुतियोंका प्रयोक्ता या शिल्पी। इसके संबंधमें यास्कका कहना है-कारू: कर्ता स्तोमानाम् अर्थात् स्तात्रों का प्रयोग करने वाला। इसके अनुसार कारूः शब्दमें कृ धातुका योग है। शिल्पीके अर्थमें कारूः शब्द भी कार्य सम्पादन रूप कृ धातुसे ही निष्पन्न है। कार्य करने वालेको कारू: कहते हैं। इसका ध्वन्यात्मकतथा अर्थात्मक आधारउपयुक्त है।व्याकरणकेअनुसार कृाउण् प्रत्यय कर यह शब्द बनाया जा सकता है। लौकिक संस्कृतमें भी यह शब्द शिल्पीकै अर्थमें
३४५: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क