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प्रयुक्त होता है! २४
(४०) तत :- यह सन्तानका वाचक है। निरुक्तके अनुसार तत इति सन्तान नाम पितुर्वा पुत्रस्य वा अर्थात् तत शब्द सन्तानका पर्याय है। यह पिताका नाम है और पुत्रका भी नाम है। पिताके अर्थ में तत शब्दमें तनु विस्तारे धातुका योग है तन्यते यस्मात् स ततः तथा पुत्रके अर्थमें तन्यते यः स ततः माना जायगा अर्थात् जिसे पैदा किया जाता है वह ततः पुत्रका वाचक है तथा इसमें भी तनु विस्तारे धातुका ही योग है। इस प्रकार पिता विस्तार करने वाला तथा पुत्र विस्तार प्राने बाला है। यास्कका यह निर्वचन प्रक्रिया एवं भाषा विज्ञानके अनुसार अपूर्ण है। इन्होंने तत शब्दमें धातु प्रत्ययादिका संकेत नहीं कर मात्र अर्थोंका ही प्रकाशन क्रिया है। व्याकरणके अनुसार तनु विस्तारे धातुसे क्त प्रत्यय कर ततः शब्द बनाया जा सकता है। लौकिक संस्कृतमें प्रचलित तात शब्दका मूल ततः ही है।
(४१) नना :- इसका अर्थ होता है- माता या लड़की। निरुक्तके अनुसार नना नमतेर्माता वा दुहिता वा२२ अर्थात् नना शब्द नम् प्रह्वत्वे धातुसे निष्पन्न होता है। इसका अर्थ माता एवं दुहिता दोनों होता है दोनोंके अर्थमें नम् धातुका ही योग माना जायगा। माताके अर्थमें ननाका प्रयोग इसलिए होता है क्योंकि माता दुग्ध पानादि करानेके लिए अपनी सन्तानकी ओर झुकती है२५ नमति या सा नना। पुत्रीके अर्थमें नना प्रयोगके संबंध में कहा जा सकता है- वह अपने पिता आदिकी परिचर्या आदिके लिए नम्र होती है। २६ या सम्मानमें नमस्कार करती है- नमति नमस्कारं करोति या सानना दुहिता । इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें इसका प्रयोग उक्त अर्थ में प्राय: नहीं देखा जाता। क्षेत्रीय भाषामें नाना एवं नानी शब्दका प्रयोग होता है जो लगता है नना का ही विकृत रूप है। नाना एवं नानी शब्द मातामह एवं मातामहीके लिए प्रयुक्त होता है। इन शब्दोंमें अर्थात्मक सादृश्यका आधार माना जायगा । मगही आदि क्षेत्रीय भाषाओंमें नुनु का प्रयोग लड़का या लड़की के लिए होता है। लगता है नना शब्द ही अपने भिन्न रूपमें यहां प्रयुक्त है।
(४२) उपसि :- इसका अर्थ होता है- समीप स्थानमें। निरुक्तके अनुसार उपसि उपस्थे२२ अर्थात् इस शब्दमें उप आस् धातुका योग है। यह निकट का वाचक है। उप + आस् उपस् + ङि = उपसि । इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है।
३५ व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क