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(८) रोध. :- इसका अर्थ होता है किनारा । निरुक्तके अनुसार-रोधः कूलं निरुणद्धि स्त्रोत ः१ अर्थात् रोधः का अर्थ होता है किनारा क्योंकि वह स्त्रोत को रोकता है। इसके अनुसार रोधस् शब्दमें रूध् आवरणे धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार, इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार रूधिरावरणे धातुसे असुन् प्रत्यय कर रोधस् शब्द बनाया जा सकता है।
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(९) कूलम् :- यह किनाराका वाचक है। निरुक्तके अनुसार कूलं जते: विपरीतात्१ अर्थात् यह जलकी धारासे प्राय: (भंग) टूटता रहता है। इसके अनुसार इस शब्द भंगे धातुका योग है। रूज् धातुको विपरीत कर यह शब्द बनाया जाता है- ज्-रूज्-रूक्- +ऊ +क क् + ऊर्जा र कूल-कूल । रूक का आद्यन्त विपर्यय होकर तथा र का ल होकर कूलम्, शब्द बना है । निरुक्तकी प्रक्रियाके अनुकूल होने पर भी भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त नहीं माना जायगा । अर्थात्मक आधार इसका उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार कूल + अच् प्रत्यय कर कूलम् या कूल् +घञर्थे कः प्रत्यय कर कूलम् शब्द बनाया जा सकता है।
(१०) लोष्ठ :- इसका अर्थ होता है- मृत्तिका खण्ड, ढेला । निरुक्तके अनुसार `रूजतेरविपर्ययेन१ अर्थात् यह भंग होता रहता है। इसके अनुसार लोष्ट शब्द रूज् भंगे धातुसे निष्पन्न होता है। रूज् से लोष्ठ शब्द बनता है-रूज्-रोष्ठ-लोष्ठः (र का ल में परिवर्तन) । र ध्वनिका ल में परिवर्तन यास्कके पूर्व से ही दीख पड़ता है। रलयोरैक्यम् का उदाहरण यास्कने अत्यधिक प्रस्तुत किया है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार लोष्ठ संघाते धातुसे अच्८ प्रत्यय कर या घञ् प्रत्यय कर लोष्ठः शब्द बनाया जा सकता है।
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(११) कुणारूम् :- इसका अर्थ होता है शब्द करने वाला, गर्जनशील | निरुक्तके अनुसार कुणारूम् परिक्वणनम् मेघम् १ अर्थात् शब्द करते कुणारूम् शब्द मेघका विशेषण है। इसके अनुसार इस शब्दमें क्वण् शब्दे धातु का योग है। इसमें वका सम्प्रसारणके द्वारा हुआ है क्वण्-क-व-उण +आरू ण् + आरू= कुणारू। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा । व्याकरणके अनुसार क्वण् शब्दे धातुसे आरू प्रत्यय कर कुणारू शब्द बनाया जा सकता है।
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३३८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क