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उपयुक्त होता है। प्रीञ् धातुसे इसका निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखता है। व्याकअनुसार भी पृ पालन पूरणयो:धातु+ लट् तिप् = पिपर्ति शब्द बनाया जा सकता ह।
(१०२) पपुरि :- इसका अर्थ होता है कामनाओं को पूरा करने वाला या तृप्त करने वाला १-पपुरिरिति पृणाति वा१०९ अर्थात् पपुरि शब्द पृ पूरणे धातु के योग से निष्पन्न होता है क्योंकि वह पूरा करने वाला होता है। २-प्रीणाति वा१०९ अर्थात् पपुरिः शब्दमें प्री तर्पने धातुका योग है क्योंकि यह तृप्त करता है। प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोण से उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। द्वितीय निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखता है। व्याकरणके अनुसार -पृ. द्वित्व + कि प्रत्यय कर पपुरिः शब्द बनाया जा सकता है।
(१०३) कुट :- इसका अर्थ होता है किया हुआ। निरुक्त के अनुसार कृत ही कुट बन गया है।१०९ इसके अनुसार इसमें कृ धातुका योग है। कृत के ऋ का उ तथा त का ट हो गया है। त का ट मूर्धन्यीकरण माना जायगा। ऋ का उ वैदिक ध्वनि विकास माना जायगा। यास्क ने कृन्त् धातुसे कुत्स,१३६ कृन्त् से कुरू१३७ निचुम्पुण:१३८ में नि+चम् + पृ धातु माना है। ये उदाहरण ऋ का उ वर्ण में विकास सिद्ध करते हैं। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से इसे उपयुक्त माना जायगा। व्याकरण के अनुसार कुट धातु से क प्रत्यय कर कुट शब्द बनाया जा सकता है।
(१०४) चर्षणि :- इसका अर्थ होता है द्रष्टा। निरुक्तमें चर्षणिः शब्द को चायिता कह कर स्पष्ट किया गया है। इसके अनुसार इस शब्द में चाय (देखना) धातु का योग माना जायगा। यह निर्वचन भाषा विज्ञानकी दृष्टि में अस्पष्ट है।
(१०५) शम्ब :- यह वज्र का नाम है। निरुक्तके अनुसार शम्व इति वज्रनाम, शमयतेव१ि०९ अर्थात् शब्द शम् उपशमे +जिब् के योग से निष्पन्न होता है क्योंकि यह शमन करता है। २. शातयतेर्वा अर्थात् यह शब्द शद् शातने णिच् के योगसे निष्पन्न होता है। इसके अनुसार इसका अर्थ होगा मारने वाला। वज्र शत्रुओं को शमन करता है या मार डालता है। इससे शत्रु शमन किये जाते हैं या मार डाले जाते हैं। प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार से युक्त हैं। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। द्वितीय निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखता है। लौकिक संस्कृतमें भी शम्ब शब्द का प्रयोग वज्र के अर्थ में होता है।१३९ व्याकरण के अनुसार शम् सम्बन्धने धातु से अच् या शं उपशमे धातु से वन प्रत्यय कर शम्ब शब्द बनाया जा सकता है।१४०
३२३ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क