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संगत माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें उर्वशी स्वर्गलोककी अप्सरा (वेश्या) का नाम है।८८ विद्युत्के अर्थमें उर्वशीका प्रयोग लौकिक संस्कृतमें प्रायः नहीं देखा जाता। व्याकरणके अनुसार उरु + अश् +अण् = उर्वश उर्वशी शब्द बनाया जा सकता है । ८९ (६५) अप्सरा :- यह स्त्री विशेष (जलपरी) तथा विद्युत्का वाचक है। दोनोंही अर्थोमें इसके निर्वचन निरुक्तमें प्राप्त होते हैं- अप्सरा अप्सारिणी" अर्थात् जलमें चलने वाली। (स्त्री) जलमें चलने वाली होती है। विद्युत्भी जलमें चलने वाली होती है। पनविजली जलसे ही संचालित होती है। अपंका अर्थ जलके अतिरिक्त कर्म भी होता है इसके अनुसार अर्थ होगा स्त्रियां कर्ममें लगी रहने वाली होती हैं। इसके अनुसार अप्सरा शब्दमें अप् सृ गतौ धातुका योग है। अप्सरा शब्दको अप्सु जलेषु कर्मसु वा सर्तुं शीलं यस्याः सा अप्सरा कहा जा सकता है । अपि वाप्स इति रूप नाम८५ अर्थात् अप्स रूपका नाम है क्योंकि यह रूप भक्षणीय नहीं होता - अप्सानीयं भवति८५ अर्थात् प्सा भक्षणे धातु नञर्थ से युक्त होकर अ + प्सा अप्स बना जिसका अर्थ होता है अभक्षणीय । आदर्शनीयं व्यापनीयं वा अर्थात् यह दर्शनीय होता है तथा व्यापनीय होता है। स्त्री एवं विद्युत् दोनों ही भक्षणीय नहीं हैं दर्शनीय एवं व्यापनीय है। स्पष्टं दर्शनायेति शाकपूणिः शाकपूणिका भी कहना है कि यह स्पष्टदर्शनके लिए होता है । अप्सका प्रयोग अभक्ष्य के अर्थमें तथा व्यापकके अर्थमें वैदिक साहित्यमें देखा जाता है। तद्रा भवति रूपवती अर्थात् वह रूपको ग्रहण किए रहती है यह विद्युत् एवं स्त्री दोनोंके अर्थमें संगत है। इसके अनुसार अ + प्सा भी माना जा सकता है - अप्स (रूप) + रा दाने = अप्सरा । अप्स से मतुप् अर्थ में र प्रत्यय भी माना जा सकता है अप्स - र+टाप् = अप्सरा । तदनयातमिति वा अर्थात् यह रूप इसके द्वारा ग्रहण किया हुआ रहता है। तदस्यै दत्तमितिवा'५ अर्थात् वह रूप उसके लिए दिया गया रहता है। विद्युत् एवं अप्सरा स्त्रीके द्वारा रूप ग्रहण किया रहता है या ये रूपवती होती हैं। यास्कके प्रथम निर्वचन अप् + सृ गतौ तथा द्वितीय निर्वचन अप्स +रा दाने धातुके योगसे निष्पन्न है। निश्चय ही दोनोंके ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त हैं। अर्थात्मक दृष्टिकोण से भी ये निर्वचन संगत हैं। भाषा विज्ञानके अनुसार इन्हें उपयुक्त माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें अप्सरा स्वर्गलोक की वेश्याका नाम है | ९० अतिशय सौन्दर्य के कारणही स्वर्ग लोककी वेश्या अप्सरा कहलाई । गुण एवं कर्म सादृश्य के कारण ही यह स्त्रीका वाचक भी है। व्याकरणके अनुसार इसे अद्भ्यः सरन्ति इति अप्सरा - अप् + सृ + असुन् प्रत्यय कर अप्सरस् अप्सरा शब्द बनाया जा सकता है । ९१ जिसका
३११ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क