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हिंसायां धातुसे अप् प्रत्यय कर शरः शब्द बनाया जा सकता है । ३९ सरः शब्दका मी प्रयोग वाणके अर्थमें होता है । वाणके अर्थमें सरः मानने पर सृ गतौ धातुसे अच्४० प्रत्यय कर इसे बनाया जाएगा।
(३१) अर्क :- यह शब्द अनेकार्थक है। यास्कने कई अर्थों में इसका निर्वचन प्रस्तुत किया है १- अर्क: देवो भवति।' यदेनमर्चन्ति। अर्थात् अर्कका अर्थ देवता होता है क्योंकि लोग इनकी पूजा करते हैं। इसके अनुसार अर्क: शब्दमें अर्च् पूजायां धातुका योग है। २- अर्को मन्त्रो भवति यदनेनार्चन्ति ।' अर्थात् अर्कका अर्थ मन्त्र होता है क्योंकि इस मन्त्रसे लोग (देवताओंकी) अर्चना करते हैं । ४१ इसके अनुसार भी अर्क: शब्दमें अर्च् पूजायां धातुका योग है । ३- अर्कमन्नं भवति अर्चति भूतानि।' अर्थात् (अर्क अन्नको कहते हैं क्योंकि यह सभी प्राणियोंको जीवित रखता हैं। इसके अनुसार अर्क: शब्दमें जीवनार्थक अर्च् धातुका योग है। ४- अर्को वृक्षो मवति संवृत्तः कटुकिम्ना ।" अर्थात् अर्कका अर्थ वृक्ष होता है क्योंकि वह कटुत्व युक्त होता है। अकवन वृक्ष कटुव की प्रधानताके चलते अर्क कहलाता है। इसके अनुसार अर्क: शब्दमें वृ आवरणे धातुका योग है। यास्कके प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय निर्वचनोंमें अर्च् धातुका योग है फलतः ये तीनों निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त हैं। चतुर्थ निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिसे उपयुक्त नहीं है। इसका अर्थात्मक महत्त्व है। व्याकरणके अनुसार अर्च् पूजायां धातुसे घञ् प्रत्यय कर या अर्क् स्तवने धातुसे घञ् प्रत्यय कर अर्कः शब्द बनाया जा सकता है। लौकिक संस्कृतमें अर्क शब्दका प्रयोग सूर्य, अकवनवृक्ष, स्फटिक, ताम्र, ब्रह्मा आदि अर्थोंमें पाया जाता है। ४३
(३२) वंश :- इसका अर्थ होता है बांस । निरुक्त के अनुसार १- वंशो वनशयो भवति१ अर्थात् यह वनमें शयन करने वाला होतां है इसलिए बांस कहलाता है। इसके अनुसार वंशः शब्दमें वन + शीङ् स्वप्ने धातुका योग है। २- वननाच्छ्ररूयत इति वा' अर्थात् इसकी सेवा करनेसे शब्द सुना जाता है। वांसकी वांसुरीसें ध्वनि निकलती है। इसके अनुसार वंश शब्दमें वन् सम्मुक्तौ धातुका योग है। वन सम्मक्तौसे इसका निर्वचन मानने पर इसका अर्थ विभिन्न भागों में विभाजित भी माना जा सकता है४४ क्योंकि बांस अपनी प्रत्येक गांठसे विभाजित होता है। अंतिम निर्वचनमें पाठान्तर प्राप्त होता है१-वननात् श्रयते १ इसके आधार पर वन् + श्रि धातुका योग है। इस आधार पर इसका अर्थ होगा- बांसकी सेवा करनेसे आश्रय प्रदान करता है। ( इससे बांस की
३०० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क