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उपयोगिता सिद्ध होती है। २- वननात् श्रूयते१ इसके अनुसार वन् + श्रुधातुसे वंश बनता है। इस आधार पर इसका अर्थ होगा सेवा करनेसे ध्वनि सुनाई पड़ती है। यास्कका प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टि से संगत है। अर्थात्मक दृष्टिसे समी निर्वचन उपयुक्त हैं। व्याकरणके अनुसार चश् कान्तौ धातुसे घञ्प प्रत्यय कर एवं नुम् का आगम कर वंशःशद बनाया जा सकता है या वन सम्मक्तौ+श:= वंशः बनाया जा सकता हैं।
(३३) पवि :- इसका अर्थ होता है-स्थनेमि हाल, चक्रके चारों ओर लगे लौहकृत। निरुक्तके अनुसार पविः स्थनेमिर्मवति। यद्विपुनाति भूमिम्' अर्थात् जो भूमिको उखाड़ती है वह पविः कहलाती है। इसके अनुसार पविः शब्दमें पू धातुका योग है। पूधातु विशरण एवं पवित्रीकरण अर्थ होता है पवित्रीकरण अर्थ मानने पर पवि:का अर्थ होगा जो पवित्र करता है। यहां पूविशरणे धातुका ही योग माना जाएगा। यास्क निरुक्तके द्वादश अध्यायमें पविःका अर्थ वज्र भी करते हैं। वज्र इन्द्रायुधका नाम है। व्रज वाचक पविःके निर्वचनमें पविः शल्यो भवति यद्विपुनातिकायम् अर्थात् पवि: शल्य (वज) होता है जो शरीरको विदारण करता है। पवि:के अर्थ सादृश्यके कारण ही इसके स्थ नेमि एवं वज्र दो अर्थ होते हैं। दोनों अर्थों में पू विदारणे धातुका योग माना गया है। स्थनेमि भूमिको फाड़ती है, वज़ भी शरीर एवं मूमिको फाड़ देता है। लौकिक संस्कृतमें पविःका अर्थ वज्रही पाया जाता है। दोनों अर्थोंमें पविःका निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार पूञ् पवने धातुसे इ:४९ प्रत्यय कर पविः शब्द बनाया जा सकता है।
(३४) धन्वन :- धन्वनका अर्थ अन्तरिख होता है। निरुक्तके अनुसार धन्वान्तस्विं धन्वन्त्यस्मादापः अर्थात् इससे जल गिरते हैं। इसके अनुसार इस शब्दमें धन्न् पती धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। माषा विज्ञानके अनुसारमी इसे संगत माना जाएगा। लौकिक संस्कृतमें धन्वन् शब्दका अर्थ धनुष होता है। व्याकरणके अनुसार धवि गतौ + कनिन् प्रत्यय कर धन्वन् शब्द बनाया जा सकता है। धनुषमें भी गति होती है। अतः धनुषको भी धन्वन् कहा गया
(३५)सिनमः- इसका अर्थ होता है अन्नानिरुक्तके अनुसार-सिनमन्नं भवति सिनातिमूतानिाअर्थात् इससेसमी प्राणीबंधेरहते हैंया यह प्राणियोंको बांधेस्खता हैसमी प्राणी इसीके वशीभूत हैं।इसके अनुसार सिनम् शब्दमें षिञ् बंधने धातुसे औणादिक्
३०१ : व्युत्पति विज्ञान और आचार्य यास्क