________________
निरुक्तके अनुसार१० असश्चन्ती असज्यमाने इतिवा१ अर्थात् अलिप्त रहती हुई। इसके अनुसार इस शब्दमें अ- (न) + सङ्घ संगे धातुका योग है। २- अव्युदस्यन्त्याविति वा अर्थात् नष्ट नहीं होती हुई। दोनों निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिसे अपूर्ण हैं। दोनों अर्थात्मक महत्व रखते हैं। व्याकरणके अनुसार अ + सङ्ग् + शतृ + डीप् प्रत्यय कर असश्चन्ती शब्द बनाया जा सकता है।
(१२) वनुष्यति :- इसका अर्थ होता है मारना। निरुक्तके अनुसार वनुष्यति हन्तिकर्मा। अर्थात् वनुष्यति हन्ति कर्मा है। यास्क इसे अनवगत संस्कारका पद मानते हैं।१६ यास्क इसके लिए धातु प्रत्ययका निर्देश नहीं करते। हन्ति कर्मा कहनेसे ही स्पष्ट हो जाता है कि इस शब्दमें हिंसार्थक वन् धातुका योग है। यह निर्वचन प्रक्रिया एवं भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे अपूर्ण है। __(१३) पाप :- इसका अर्थ होता है-पापी। निरुक्तमें इसके कई निर्वचन प्राप्त होते हैं१- पापः पाताऽपेयानाम्' अर्थात् अपेय पदार्थोंको पीने वाला पापी कहा जाता है। इस निर्वचनके अनुसार पापः शब्दमें पा पाने धातुका योग है। २- पापत्यमानो वा' अथवा वह पाप कर्मसे वार-वार गिराया जाता है। इसके अनुसार पापः शब्दमें पत् धातुका योग है। ३. अवाडेव पततीति वा१ अर्थात् वह नीचेकी और गिरता जाता है, नरकमें ही जाता है।१८ इसके अनुसार भी पापः शब्दमें पत् धातुका योग है। ४. पापत्यतेर्वा स्यात्१ वार-वार गिरनेके कारण वह पापः कहलाता है। यह पत् धातुके यङ लुक प्रयोगसे निष्पन्न होता है। पापत्यका पा आदेश तथा प प्रत्यय कर पाप: बनाया गया है। अर्थात्मक दृष्टिकोणसे सभी निर्वचन उपयुक्त है। प्रथम निर्वचनमें ध्वन्यात्मक आधार संगत है। प्रथम निर्वचनसे स्पष्ट होता है कि कुत्सित पान करने वाला पापी कहा जाता था। साथही साथ पापियोंको नरकमें भी जाना पडता था। व्याकरणके अनुसार पाप धातुसे अच् प्रत्यय कर पापः शब्द बनाया जा सकता है।१९
(१४) तरुष्यति :- इसका अर्थ होता है हिंसा करना। यास्क इसके निर्वचनमें मात्र कहते है - तरुष्यतिरप्येवं कर्मा अर्थात् तरुष्यतिमी इसी हिंसार्थक धातुका है। इसके अनुसार तर हिंसायां धातुका योग इस शब्दमें माना जायमा। धातु पाठमें हिंसार्थक तर् धातुकी उपलब्धि नहीं होती।२० वैदिक कालमें तर् धातु हिंसार्थकमी होगा१ निरुक्त प्रक्रिया एवं भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे पूर्ण निर्वचन नहीं माना जायगा।
(१५) मन्दना :- यह स्तुतिका वाचक है। निरुक्तके अनुसार मन्दना भन्दते:
२९४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क