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में सादृश्य का आधार दृष्टिगत होता है।
. (१२६) नाम :- निरुक्तमें सप्तनामा शब्द में आये नाम पद का निर्वचन करते हुए यास्क कहते हैं-सप्तनामा, सप्तास्मैरश्मयो रसान्नमयन्ति सप्तैनमृषयः नमन्ति स्तुवन्तीति सप्तनामन्। यहां नाम शब्दमें नम् धातुका स्पष्ट योग प्राप्त है नम् धातु झुकना तथा स्तुति करना अर्थका द्योतक है। वहीं पर यास्क पुनः कहते हैंइदमपीतरन्नामेतस्मादेव अर्थात् दूसरे अर्थमें प्रयुक्त नाम भी इसी नम् धातुसे बनते हैं। यह अमिधान या संज्ञा का वाचक है। अभिसन्नामात्१४४ अर्थात् नाम शब्द झुकना अर्थ वाला नम् धातुसे बना है। क्योंकि अपने गुणोंको प्रकट करनेके लिए सम्मुख होकर जो झुकता है वही नाम है- (स्वम् अर्थं प्रत्याययितुम् आभिमुख्येन सन्नमति इति नाम) तात्पर्य यह है कि नाम में गुण सन्निहित रहता है।१९० इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। यह आख्यातज सिद्धान्त पर आधारित है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे उपयुक्त माना जाएगा। यह नामकी यथार्थप्रक्रिया का प्रदर्शक है। व्याकरणके अनुसार णम् प्रणत्वे धातु से ड.१९१ प्रत्यय कर नाम शब्द बनाया जा सकता है। उच्चारणान्तरके साथ यही शब्द भारोपीय परिवारकी लै.मे Nomen तथा अंग्रेजी भाषा में Name के रूप में उपलब्ध होता है।
(१२७) सम्वत्सर :- इसका अर्थ होता है साल या वर्ष या ग्रीष्म, वर्षा तथा हेमन्त तीन ऋतुओं वाला। निरुक्तके अनुसार - सम्वत्सरः संवसन्तेऽस्मिन्भूतानि१४४ अर्थात् इसमें सभी प्राणी अप्राणी (भूतजात) रहते हैं। इसके अनुसार सम्वत्सर शब्दमें सम् + वस् निवासे धातुका योग है- सम् + वस् + सर् = सम्वत्सरः। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार सम् + वस् + सर प्रत्यय कर सम्वत्सरः शब्द बनाया जा सकता है।१९२
(१२८) ग्रीष्म : यह ऋतु वाचक शब्द है। ज्येष्ठ एवं आषाढ़ में ग्रीष्म ऋतु रहती है। निरुक्तके अनुसार -ग्रीष्मो ग्रस्यन्तेऽस्मिन् रसा:१४४ अर्थात् इस ऋतुमें रस (जल).सूर्य के द्वारा सुखा दिये जाते हैं।१९३ इस निर्वचनके अनुसार ग्रीष्म शब्दमें ग्रस् अदने धतुका योग है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार भी इसे उपयुक्त माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार ग्रस् अदने धातुसे मक्१९४ प्रत्यय कर ग्रीष्मः शब्द बनाया जा सकता है।
२८२ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क