________________
अमा, पात्रम् , पापः भन्दना, आहनः, नदः, अक्षा :, अतिः, हासमाने, द्विता, शंभुः, वराहः, स्वसराणि, शरः, अर्कः, वंशः, पविः, धन्व, सिनम् , चित्, द्युम्नम् , पवित्रम्,तोदः, अरिः, स्वञ्चा, शिपिविष्टः, आघृणिः, पृयुज़या, अथर्युः, दीधितयः, अरणी, आंगूषः, आपातमन्युः, धुनिः, शिमी, ऋजीषी, धानाः, बब्धाम्, श्मशा, उर्वशी, अप्सरा, पुष्कर : पुष्पम् , वयुनम्, वाजस्पत्यम्, वाजगन्ध्यम्, गधिता, तौरयाणः, अह्रयाणः, हरयाणः, आरितः, बन्दी, निष्पपी, सपः, तूर्णाशम् , अंग, निचुम्पुणः पदिः, मुक्षीजा, पादुः, वुसम्, उरणः, ऊंगा, जोषवाकम् , कृत्तिः, श्वघ्नी, कितवः, उर्मिः, नौः, पिपर्ति, पपुरि, कुट, शम्ब, पृथक्, इम, कवचम्, आहावः, आवहः, अवतः, कोषः, संचयः, काकुदः कोकुवा, जिह्वा, तालु, वीरिटम् नियुतः, सृणिः, अंकुशः शब्द परगणित हैं। इन शब्दों में बहुतोके एकसे अधिक निर्वचन भी प्राप्त होते हैं जिनमें एक या एकसे अधिक तो भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे पूर्ण हैं लेकिन शेष के भाषा वैज्ञानिक आधार संगत नहीं।
ध्वन्यात्मक दृष्टिसे अपूर्ण निर्वचनोंमें नराः, दूतः, असश्चती, पापः, श्वात्रम्, वराहः, शर्याः, वंशः, सचा, आ.वर्पः, अधिगुः, तृप्रहारी, श्मशा, सः, पुष्कर, गध्यम् , कौरयाणः क्षुम्पम् , निचुम्पुणः, मुक्षीजा, दुसम्, वृकः, स्वम्, ते सयः, कवचम्, द्रोणम्, सिन्धु, वीस्टिम्, अच्छा शब्द आते हैं। इनमें कुछ शब्दोंके.एकाध निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिसे. संगत भी है। लेकिन शेषके ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त नहीं।
भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे अपूर्ण निर्वचनोंमें अन्धः, वनुष्यति, लष्यतिः, पड्भिः , ससम्, काणुका ..तृप्रहारी ए.वं असंत्रम को देखा जा सकता है। ब्रः, इत्या, तवसः, समम्:, चर्षणिः, तूतुमाकृषे शब्द निर्वचनकी दृष्टिसे अस्पष्ट हैं। किश्वः शब्दशब्दानुकृति पर आधारित है। आहन: शब्दके निर्वचनमें लक्षणा का आधार लिया गया है। नद शब्दकी व्याख्या यास्क सादृश्यके आधार पर करते हैं। स्वसरागमें दृश्यात्मक आधार है। पुष्प शब्द धातुज सिद्धान्त पर आधारित है।
निरुक्त के पंचम अध्याय में विवेचित निर्वचनों का परिशीलन द्रष्यव्य है
(१) सस्निम् :- इसका अर्थ होता है मेघ। निरुक्त के अनुसार-सस्नि संस्नातम् मेघम्१ अर्थात् वह जलों से सम्यक् तया स्नात है। जल से वेरित है। इस निर्वचनके अनुसार सस्निम् शब्दमें स्ना शौचे या वेष्टने धातुका योग है। सम् + स्ना = सस्निम्। इसके ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त हैं। व्याकरणके अनुसार स्ना धातुसे
२९० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क