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:- = - ---:-- (अकुत्सित - 5 कट्टा - यार है। . उचगायकल उच्यते॥१४ अपारो न यमच्छनीति ९ः ज्यांत कच्छ को मी अकयार क जाता है क्योंकि वह कूप पर जाना पसन्द नहीं करना है। क जल होने कारण कच्छ- नद. या समुद्र हो रहना पसन्द करता है। इस निर्वचन अनुसार न--कृपन च्मती धातुल योग है। प्रथम एवं तृतीय निर्दचनका ध्वन्यात्मक एवं स्थानक अाधार उपयुक्त है। द्वितीय निर्वचन अस्पष्ट है। व्याकरणके अनुसार अ + कु+ पृ + ऊपप्रत्यय कर इसे बनाया जा सकता है। अथवा न अ कूप +ऋगतौ अण-अकूमारः बनाया जा सकता है। लौकिक संस्कृतमें समुद्र एवं महाकच्छपके अर्थम अकूमास्वा प्रयोग मिलता है सादृश्यके आधार पर अकूपार विभिन्न अयोका काचक हो गया।
(७०) कच्छम :-इसको अर्थ होता है कछुआ। निरुक्तके अनुसार (१) कच्छं पातीति अर्थात् वह अपने कच्छ (मुखमाष) की खा करता है. इसके अनुसार कच्छा पाखणे छातुसे यह शब्द निपनहेता है। (२) कच्छेन पातीति वार४ अर्थात् वह अपने कच्छ कूर्म कपट से अपने अंगों की खा करता है। इसके अनुसार मी कच्छप शब्द में कच्छ पा रक्षणे धातुका योग है। (३) कच्छेन पिवतीतिवार अर्थात् वह कच्छ मुख माणसे पीता है। इसके अनुसार इस शब्दमें कच्छ पा पाने धातुका योग है। समय निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे संगत हैं। कच्छ यहां तीन आयों को छोवित करता है। कच्छ क्रमश: मुख, कमठ त्या मुख का द्योतक है। या ध्यान मी स्था एवं पान दो अर्थों में प्रयुक्त है। व्याकरण के अनुसार कच्छ+ पा +क: प्रत्यय कर कच्छपः शब्द बनाया जा सकता है। भाषा विज्ञान के अनुसार इसे सर्दा संपत माना जाएगा।
(१) कच्छ:- यह शब्द मी अनेकार्थक है। निरुक्तमें यह मुख, कमठ तथा नदी किनारा के अर्थमें विवेचित है।कच्छ:,खच्छःखच्छदः अर्थात कच्छशब्दखच्छ या खकद्रसे बना है। खच्छ इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह आकाश से आच्छादित है। सेन छाचते खच्छ: कच्छ व सह कच्छ आकाश को आच्छादित स्खता हैसमाकाशं पदयातिपय ख+छट्सच्छद - कच्छ,ख का क - (महलाण का अल्प प्राण में परिवर्तन)। किनाराका वाचक कच्छ शब्दमी इसी प्रकार बनता है अयमपीतरी नदी कच्छ एतस्मादेवाकमुदकम् तेन छायो अर्थात् नदीका किनारा वाचक कच्छ कम् +मुद्धातुके बोरसे बना है क्योंकि वह जलसे आच्छादित रहता हैखिच्छः एवं
२६६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यस्क