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करते। सुप्रायणा: सुप्रगमना:९४ सुप्रायणाः शब्द में सु+प्र+अय् गतौ धातुका योग स्पष्ट है। निर्वचन प्रक्रिया एवं भाषा विज्ञानके अनुसार यह निर्वचन अपूर्ण है।
(७६) अप्रायुव :- इसका अर्थ होता है प्रमाद रहित। निरुक्तके अनुसार . अप्रायुवोऽप्रमाद्यन्तः।९४ यास्क अप्रायुवः का भी मात्र अर्थ स्पष्ट करते हैं। अप्रायुवः शब्द में अ+प्र +आ + यु धातुका योग प्रतीत होता है। अप्रमाद्यन्तः से ही अप्रायुव: का अर्थ यास्क स्पष्ट करते हैं। निर्वचन प्रक्रियाके अनुसार एवं भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से इसे अपूर्ण माना जाएगा।
(७७) च्यवन :- यह ऋषि का वाचक है। मन्त्र द्रष्टा ऋषि कहे जाते है। निरुक्तके अनुसार च्यवन ऋषिर्भवति। च्यावयिता स्तोमानाम्१४ अर्थात् वह मन्त्रों (स्तोमों) का च्यावयिता प्रकाशक है या संग्रह करने वाला है। च्यवन एक ऋषिका भी नाम है जिसका वेदों में च्यवान रूप प्राप्त होता है।११५ च्यावयिता स्तोमानाम् के आधार पर च्यवन शब्द में च्यु गतौ धातुका योग है। इस निर्वचनका आधार ऐतिहासिक है। ब्राह्मण ग्रन्थों में च्यवन शब्द ऋषि विशेषके लिए प्रयुक्त हुआ है।११६ यह निर्वचन भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। उपर्युक्त निर्वचनके आधार पर च्यवनको वैदिक ऋषि विशेष माना जाएगा।
(७८) युवा :- इसका अर्थ होता है जवान। निरुक्तके अनुसार-युवा प्रयौति कर्माणि१४ अर्थात् जो कार्यों का सम्पादन करता है या कर्मों को मिश्रित करता है। इसके आधार पर युवा शब्दमें यु मिश्रणे धातुका योग है। यह निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार से युक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे उपयुक्त माना जाएगा। व्याकरण के अनुसार यु मिश्रणे धातुसे कनिन् प्रत्यय कर युवन् युवा शब्द बनाया जा सकता है।
(७९) नक्षति :- यह क्रिया पद है। यह करोति कर्म वाले तक्ष् धातुसे निष्पन्न होता है. तक्षतिः करोतिकर्मा५४ यास्क तक्षति क्रियाका प्रकृत सम्बन्धमें अर्थ स्पष्ट करना ही अपना उद्देश्य समझते हैं। तक्ष् धातुसे तक्षति ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार रखता है। इसे पूर्ण निर्वचन नहीं कह कर धातु संकेत कहा जा सकता है।
(८०) रज :- यह अनेकार्थक है। इसका अर्थ- प्रकाश,जल, लोक, रक्त तथा दिन होता है|११८ निरुक्तके अनुसार-रजो रजते:९४ अर्थात् यह शब्द गत्यर्थक रज् धातुसे निष्पन्न होता है जो निघण्टु पठित है। रजः शब्दके समी अर्थोंमें गति विद्यमान
२६८: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क