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धातुका योग है। उपर्युक्त निर्वचनोंमें संग्रामके स्वरूप पर प्रकाश पड़ता है। युद्धके लिए दो दल एकत्र होते थे तथा दोनों परस्पर में काफी हल्ला मचाते थे। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे द्वितीय निर्वचन उपयुक्त है। द्वितीय निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। शेष निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्त्व है। व्याकरणके अनुसार सम् + ग्राम + णिच् +घञ् प्रत्यय कर संग्राम शब्द बनाया जा सकता है।५०
(२९) एकम् :- यह संख्या वाचक शब्द है। यह प्रथम अंक (पहला) का वाचक है। निरुक्तमें इसके निर्वचनमें-एक इता संख्या३५ अर्थात् एक संख्या दूसरी संख्या तक पहुंची रहती है। इता संख्याका अर्थ है गयी हुई संख्या। इसके अनुसार एक शब्द में इण् गतौ धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एतं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भारोपीय परिवारकी अन्य भाषाओंमें भी किंचित् ध्वन्यन्तरके साथ यह शब्द इसी अर्थमें प्राप्त होता है। संस्कृत- एकम् अवेस्ता-अएव, ग्रीक-eis, लैटिनumus , अंग्रेजी• one व्याकरण के अनुसार इण् गतौ धातुसे कन्५१ प्रत्यय कर एकम् शब्द बनाया जा सकता है। भाषा विज्ञानका अनुसार इस संगत माना जाएगा।
(३०) द्वौ :- यह दो संख्याका वाचक है। इसका प्रयोग नित्य द्विवचनमें ही होता है। निरुक्तके अनुसार द्वौ द्रुततरा संख्या अर्थात् यह एक संख्याकी अपेक्षा द्रुततर होती है। इस निर्वचनके अनुसार इस शब्दमें त्रु गती धातुका योग है। इस निर्वचनमें आंशिक ध्वन्यात्मकता है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे वृ धातुसे निष्पन्न मानना ज्यादा संगत है। गत्यर्थक होनेके कारण इसका अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भारोपीय परिवारकी अन्य भाषाओंमें भी किंचित् ध्वन्यन्तरके साथ यह उपलब्ध होता है- संस्कृत द्वि, अवे. द्व, ग्रीक-due, लैटिन- duo , अंग्रेजी- two.
(३१) त्रय : यह तीन संख्याका वाचक है। यह नित्य बहुवचनान्त है। निरुक्तके अनुसार त्रयस्तीर्णतमा संख्या५ अर्थात् यह दो की अपेक्षा अधिक तरने वाली संख्या है। इसके अनुसार इस शब्दमें तृ तरणे धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे यह संगत है। भारोपीय परिवारकी अन्य भाषाओंमें किंचित् ध्वन्यन्तर के साथ यह शब्द उपलब्ध होता है-संस्कृत-त्रि, अवे.-थिग्रीक Truis, लैटिन-Tres, अंग्रेजी- Three. व्याकरण के अनुसार त्रि-जस् कर त्रयः बनाया जा सकता है।
(३२) चत्वारः-यह संख्या वाचक शब्द है। इसका अर्थ होता है-चार। निरुक्तके
२०९. व्युत्पत्नेि विज्ञान और आचार्य यास्क