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कुः = पशुः शब्द बनाया जा सकता है।९९ व्याकरण की प्रक्रिया में दृश् का पश्य आदेश हो जाता है। इसके अनुसार सर्वानविशेषण पश्यतीति पशुः माना जाएगा। वैदिक संहिताओंमें पशु उन प्राणियोंके लिए प्रयुक्त हुआ है जो सुख दुःख अनुभव करने वाली विशिष्ट इन्द्रिय शक्ति से युक्त है इस क्षेत्र के अन्तर्गत सम्पूर्ण मनुष्य , पशु पक्षी आदि आ जाते हैं.
चतुर्नमो अष्टकृत्वो भवाय दशकृत्वः पशुपते नमस्ते तवे मे पंच पशवो विमक्ता गावो अश्वाः पुरुषा अजावयः००
इसके अनुसार गौ, अश्व, पुरुष, अज एवं पक्षी आदि पशुकी श्रेणीमें आते हैं। संहिता कालसे ही पशु शब्दमें अर्थ संकोच हुआ है। सभी प्राणियों के लिए प्रयुक्त होने वाला पशु शब्द गवादि पशु जाति के लिए ही सीमित हो गया। भाषा प्रवाह के चलते इस प्रकार का अर्थ संकोच संभव है एवं मान्य है। सम्प्रति पशु शब्द गवादि पशुजाति विशेषके लिए ही प्रचलित है।१०० __(७५) अयम् :- यह एक सर्वनाम है। इसका अर्थ होता है यह। यह निकटतर बतलाने वाला है। निरुक्त के अनुसार अयम् एतत्तरोऽमुष्मात्६५ अर्थात् जो उससे निकटतर है। इसके अनुसार इसमें इण्गतौ धातु का योग है। आ + इ = अयम् यह निर्वचन की पराकाष्ठा है। ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टि से इसे उपयुक्त माना जाएगा।। व्याकरण के अनुसार इदम् शब्द का पुलिंग प्रथमा एकवचन में अयम् रूप होता है। भाषा विज्ञान के अनुसार भी यह संगत है।
(७६) असौ :- यह भी एक सर्वनाम है। इसका अर्थ होता है वह। निरुक्त के अनुसार-असौ अस्ततरः अस्मात्६५ अर्थात् जो इससे दूरतर है वह असौ कहलाता है। यह अयम् की अपेक्षा दूरवर्ती के लिए प्रयुक्त होने वाला सर्वनाम है। इसके अनुसार इसमें असं क्षेपणे धातुका योग है। इसका भी ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार अदस् शब्दके स्त्रीलिंग या पुलिंग के प्रथमा एक वचन में असौ शब्द होता है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा।
(७७) वृषल :- इसका अर्थ होता है निन्दाका पात्र मनुष्य, घृणित मनुष्य या नीच मनुष्य, निरुक्तमें इसके दो निर्वचन प्राप्त होते हैं (१) वृषलो वृषशीलो भवतिम अर्थात् वृषल वृष या बैलके स्वभाव वाला होता है। इसके अनुसार इस शब्द में दो . पद खण्ड हैं-वृष + लः। वृष शब्द वृषभ का वाचक है तथा लः शील अर्थ द्योतित करने वाला प्रत्यय।
२२३: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क