________________
हैं। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरण के अनुसार अत् + ण्यत् प्रत्ययकर अत्य: अत्या: शब्द बनाया जा सकता है।
(४८) हंस :- हंस शब्द सूर्य एवं पक्षी विशेषका वाचक है। निरुक्तके अनुसार हंसो हन्तेजन्त्यध्वानम्६५ अर्थात् हंस शब्द में हन् गतौ धातुका योग है क्योंकि यह मार्ग गमन करता है। सूर्य एवं हंस पक्षी दोनों मार्ग गमन करते हैं। हन् धातुसे हंस मानने में स वर्ण का आगम माना गया है जो निर्वचन प्रक्रिया के अनुकूल है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अस्मिक आधार उपयुक्त है। यह आख्यातज सिद्धान्त पर पूर्ण रूप से आधारित है।७९ व्याकरणके अनुसार हन् हिंसागत्यौ धातु से अच्८० प्रत्यय कर हंसः शब्द बनाया जा सकता है। भारोपीय परिवार की अन्य भाषाओं में भी किंचित् ध्वन्यन्तरके साथ यह शब्द सुरक्षित है-ग्रीक-Khen, गाथिक-gans, अंग्रेजी goose . भाषा विज्ञानके अनुसार यास्कका निर्वचन उपयुक्त है।
(४९) श्रेणि :- यह पंक्ति या कतारका वाचक है। निरुक्तके अनुसार -श्रेणिः श्रयते:६५ अर्थात् श्रेणिः शब्द श्रिञ् सेवायां धातुसे निष्पन्न होता है। समाश्रिता भवन्ति। अर्थात् एक दूसरे के आश्रय लिए होते हैं या एक दूसरे के आश्रित होते हैं। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरण के अनुसार श्रिनु सेवाया धातुसे निः प्रत्यय कर श्रेणि शब्द बनाया जा सकता है।८१
(५०) कायमान :- इसका अर्थ होता है देखता हुआ या चाहता हुआ। निरुक्तके अनुसार- कायमानश्चायमानः कामयमान५ इति। कायमान शब्द को चायमान के द्वारा स्पष्ट किया गया है इसके अनुसार इसमें चाय दर्शने धातुका योग है। कामयमान: के अनुसार कायमान शब्द में कामय् धातुका योग माना जाएगा। कामय धातु इच्छार्थक है। यह निर्वचन भाषा विज्ञान की दृष्टिसे पूर्ण संगत नहीं है।
(५१) लोधम् :- इसका अर्थ होता है लुब्ध। निरुक्तके अनुसार-लोधं लुब्धमृषि६५ अर्थात् लुब्ध ऋषि को। इसे किसी ऋषिका नाम भी माना जा सकता है। दुर्गवृत्तिके अनुसार-तपस्या का लय नहीं हो इस लोभ में स्थित ऋषि को लोध कहा गया है।८२ वह निर्वचन अनवगत संस्कारका है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे पूर्ण उपयुक्त नहीं माना जाएगा।
(५२) शीरम् :- यह अग्निका वाचक है जो व्यापक है। निरुक्तके अनुसार (१) शीरम् अनुशायिनमितिवा६५ अर्थात् जो सभी प्राणियोंमें (जठरानल में) व्याप्त है। या
२६० : व्युत्पनि विज्ञान और आचार्य यास्क