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(१२०) ऊर्दरम् :- इसका अर्थ होता है. अन्नरखने का मृतिका पात्र , कोठी। निरुक्त के अनुसार -(१) ऊदरमुद्दीणं भवति१८ अर्थात् यह ऊपर की और खुला रहता है। इसके अनुसार इस शब्द में उत् +दृ विदारणे धातु का योग है (२) ऊर्जे दीर्ण वा११८ अर्थात् वह अन्नके लिए रहता है। कोठीमें अन्न रखनेके लिए छिद्र होते हैं। इसके अनुसार भी इस शब्दमें ऊ + दृ धातुका योग है। डा. वर्मा इन निर्वचनों को असंगत मानते हैं।१६९ लेकिन दोनों ही निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक महत्त्व रखते हैं। अतः भाषा विज्ञानके अनुसार भी इन्हें संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार ऊर्ज +दृ + अल् (अत् वा)१७० कर ऊर्दरम् शब्द बनाया जा सकता है।
(१२१) कृदरम् :- इसका अर्थ होता है अन्न रखने का मृतिका पात्र, कोठी। निरुक्तके अनुसार-कृदरं कृतदरं भवति११८ अर्थात् वह छिद्र किया हुआ होता है। इसके अनुसार इस शब्द में कृत् +दृ विदारणे धातु का योग है। कृत् +दृ-दरम् = कृदरम्। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरण के अनुसार कृ-दृ-अच्१७१ प्रत्यय कर कृदरम् शब्द बनाया जा सकता है। भाषा विज्ञानके अनुसार यह निर्वचन संगत है।
(१२२) रम्म :- यह दण्ड का वाचक है। निरुक्तके अनुसार-रम्भ आरभन्त एनम्११८ अर्थात् वृद्ध आदि इसका सहारा लेते हैं।१७२ इसके अनुसार इस शब्द में रभ् धातु का योग है। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरण के अनुसार रभ धातु से अच्१७३ प्रत्यय (नुम्) कर रम्भः शब्द बनाया जा सकता है।१७४ भाषा विज्ञानके अनुसार यह संगत है।
__ (१२३) पिनाकम् :- निरुक्तके अनुसारं इसका अर्थ होता है दण्ड। इसके निर्वचनमें यास्कका कहना है-एनेन प्रतिपिनष्टि११८ अर्थात् इससे मारा जाता है या संचूर्ण किया जाता है। इस निर्वचनके अनुसार पिनाक शब्दमें-पिष् संचूर्णने धातुका योग है। यह निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। कालान्तरमें पिनाक शब्द शिवधनुषके अर्थ में रूढ़ हो गया है।१७५ भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से यह अर्थादेश का परिणाम है। पिनह्यते इति पिनाक:/१७६ पिनाक शब्द शिव धनुष के अतिरिक्त पांशु, वृष्टि तथा त्रिशूल को भी कहते हैं।१७७ लौकिक संस्कृत में पिनाक शब्द अर्थविस्तार को द्योतित करता है। व्याकरणके अनुसार पन् स्तुतौ धातु से आक् इत्व कर पिनाकः शब्द बनाया जा सकता है।१७८
२३६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क