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महाव्रतं यस्य सः महिव्रतः। यह शब्द सामासिक है। यास्क ऐसे शब्दोंको मात्र अर्थ स्पष्ट कर ही छुट्टी पा लेते हैं। अर्थात्मक दृष्टिसे इसे उपयुक्त माना जाएगा।
(८८) काक :- इसका अर्थ काक पक्षी विशेष है। निरुक्तके अनुसार काक इति शब्दानुकृति:११८ अर्थात् काक नाम उसके शब्दानुकरणके अधार पर पड़ा है। यह का का शब्द विशेष करता है अत: उसके इस ध्वनि के आधार पर काक नाम पड़ा। पक्षियोंके नाम प्राय: शब्दानुकृति पर ही आधारित होते हैं।११९ यह सिद्धान्त अंग्रेजी, मराठी आदि भाषाओं में भी देखा जाता है।१२० यास्क इस निर्वचनके क्रम में आचार्य औपमन्यवके सिद्धान्त का भी उपस्थापन करते हैं :- न शब्दानुकृतिर्विद्यत इत्यौपमन्यवः११८ अर्थात् आचार्य औपमन्यवके अनुसार पक्षियोंका नामकरण उसके शब्दानुकरण पर नहीं हुआ है। काकोऽपकालयितव्यो भवति११८ अर्थात् काक निकालने योग्य होता है। इसके अनुसार काकः शब्दमें निकालना अर्थ वाली कल् धातुका योग है। कल् धातुसे ही काकः शब्द बना। यास्कका निर्वचन भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। औपमन्यवका निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखता है जो ध्वन्यात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त नहीं है। शब्दानुकृति के अनुसार ककते वा लोल्यात् काकः।१२१ व्याकरणके अनुसार कै शब्दे धातुसे कन्११२ प्रत्यय कर काकः शब्द बनाया जा सकता है। धृष्टतादि दोष के कारण काक शब्द कालान्तर में निन्दा परंक अर्थ का वाचक हो गया है यथा-तीर्थकाक:१२२क
(८९) तित्तिरि :- यह तीतर पक्षी विशेष का वाचक है। निरुक्त के अनुसार(१) तित्तिरिस्तरणात्११८ अर्थात् तरण क्रियोके कारण तित्तिरि कहा जाता है क्योंकि वह उछल-उछल कर चैलता है। तित्तिरिः शब्द में तृप्लवनतरणयोः धातुका योग है। (२) तिलमात्र चित्रतिवा११८ अर्थात इसमें तिलं मात्र चित्र होता है। इस पक्षी का शरीर तिल मात्र चित्रित होता है। यह तित्तिरि. के स्वरूप पर आधारित है। इन निर्वचनों में चाल एवं कर्म का अनुकरण पाया जाता है। यास्क के शब्दानुकृति सिद्धान्त के आधार पर भी इसका निर्वचन किया जा सकता है-तित्ति शब्दं रातीति तित्तिरिः।१२३ यास्कके प्रथम निर्वचनमें तृ प्लवनतरणयोः धातुका द्वित्व रूप होकर तित्तिरिः बन गया है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। द्वितीय निर्वचम आकृति मूलक है इसका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त नहीं। व्याकरणके अनुसार तृ धातु का द्वित्व + (इ:) प्रत्यय कर तित्तिरिः शब्द बनाया जा सकता है।१२४ यास्कका प्रथम निर्वचन भाषा विज्ञानके अनुसार भी उपयुक्त है।
२२७: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क