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औपमन्यव द्वारा उपस्थापित कुत्सका निर्वचन यास्कको मान्य है। ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे दोनों निर्वचचन उपयुक्त हैं। कृत् से कुत्स तथा कृ + स्तु से कुत्स के अनुसार पता चलता है कि वैदिक कालमें ऋ ध्वनि का उ में विकास हुआ है। इस प्रकारके और भी उदाहरण उपलब्ध हो जाते हैं यथा अप्रतिष्कुतः कृत , क्रूरकृन्त आदि। कृत्स का अर्थ वज्र लक्षणा के आधार पर हआ है।६३ भाषा विज्ञानके अनुसार दोनों निर्वचन उपयुक्त हैं। ...
(५१) सुपर्ण :- इसका अर्थ होता है किरण। निरुक्त में इसे सूर्यकी किरण माना गया है। इसके निर्वचनमें सुपर्णा: सुपतना५ अर्थात् अच्छी तरह गिरने वाली। इसके अनुसार सुपर्ण शब्द सु + पत् धातुसे माना जाएगा। पत्से पर्ण ध्वन्यात्मक विसंगति का परिणाम है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त नहीं माना जाएगा।
(५२) पाक :- इसका अर्थ होता है पका हुआ। निरुक्तमें इसके निर्वचनमें कहा गया है-पाकः पक्तव्यो भवति३५ इसके अनुसार पाक् शब्दमें पच् धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार इसे पच् +धञ् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है।
(५३) इन :- यह ईश्वर का वाचक है। निरुक्तके अनुसार -सनिति ऐश्वर्येण अर्थात् यह ऐश्वर्य से संयुक्त है। इसके अनुसार इसमें सन् सम्भक्तौ धातुका योग है। सनितमनेनैश्वर्यमिति वा३५ या इससे ऐश्वर्य युक्त है। इसके अनुसार भी इसमें सन् सम्भक्तौ धातुका योग है। ये निर्वचन ध्वन्यात्मक आधारसे रहित हैं। इनका अर्थात्मक महत्त्व है। यास्क मात्र यहां अर्थ स्पष्ट करना अपना उद्देश्यं समझते हैं। व्याकरणके अनुसार इण् गतौ र नक्४ प्रत्यय कर इनः शब्द बनाया जा सकता है।
(५४) बहु :- बहुः का अर्थ होता है-अधिका निरुक्त के अनुसार -प्रभवतीति सत:६५ अर्थात् समर्थ होने के कारण यह बहु कहलाता है। इसके अनुसार इस शब्द में भू धातु का योग है। ध्वन्यात्मक दृष्टिकोणसे इसमें व्यंजन गत औदासिन्य है।६६ भू-भ + उ, भ-ब ह् + बहुः। इसका अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे वहि वृद्धौ धातुसे निष्पन्न माना जा सकता है। व्याकरण के अनुसार भी वहि वृद्धौ धातु से उ:६७ प्रत्यय कर बहः शब्द बनाया जा सकता है।
(५५) ह्रस्वः-हस्वका अर्थ छोटा है।निरुक्तके अनुसार ह्रस्वो ह्रसते:६५ अर्थात् वह छोटा या अल्प होता है। इसके अनुसार ह्रस्व शब्दमें न्यूनार्थक ह्रस्, धातुका
२१५: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क