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तत्कर शब्द ही तस्कर हो गया है। यास्कके अनुसार तनोतेर्वा स्यात् सन्तत कर्मा भवति। अहोरात्रः कर्मावा६५ अर्थात् तस्कर शब्द तनु विस्तारे धातुसे बना है। क्योंकि तस्कर लगातार दुष्कर्ममें निरत रहता है। यह रात दिन दुष्कर्म करता रहता है। यास्कका निर्वचन अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है लेकिन ध्वन्यात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त नहीं। यह निर्वचन कर्म पर आधारित है तथा इसमें लक्षणा का योग है। लोक में भी यह इसी अर्थमें प्रयुक्त होता है। नैरुक्तोंका निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है-तत्-करःतत्-कृ कर् + अ: तत्करः तस्करः। व्याकरणके अनुसर तत् + कर (कृ) + अच्७३ प्रत्यय कर तस्कर शब्द बनाया जा सकता है। तत्कर से तस्कर शब्द में वर्ण विकार माना जाएगा।
(६५) देवर :- यह एक सम्बन्ध वाचक शब्द है। इसका अर्थ है पतिका छोटा भाई। निरुक्तके अनुसार देवरः द्वितीयो वर उच्यते अर्थात् द्वितीय वर को देवर कहा जाता है। इसके अनुसार देवर शब्दमें दो पद खण्ड हैं-देवर। दे द्वि का वाचक है तथा वृ धातु का वर गुण होकर देवरः हो गया है। यास्कके इस निर्वचनसे स्पष्ट होता है कि पतिकी मृत्यु होने पर या पति के अभाव में देवर ही पति का कार्य करता था जो द्वितीय वरके रूपमें अभिहित होता था।७४ दिव्यति कर्मा वा६५ अर्थात् देवर शब्द स्तुत्यर्थक दिव् धातुसे बना है क्योंकि वह अपनी भ्रातृजाया को आदर, सम्मान करता है यह निर्वचन ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक आधार पर आधारित है। दोनों निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त हैं। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से दोनों निर्वचनोंको संगत माना जाएगा। देवर शब्दका निर्वचन दिव क्रीडायां धातु से भी माना जा सकता है। इसके अनुसार देवरका अर्थ होगा - भ्रातृजायाके साथ क्रीड़ा करने वाला या हंसी मजाक करने वाला। व्याकरणके अनुसार देवृ धातुसे अच् प्रत्यय कर देवरः शब्द बनाया जा सकता है। द्वितीय वर ही वर्ण लोप होकर एवं ह्रस्वीभूत होकर देवरके रूपमें अवशिष्ट है। देवर शब्द वैदिक भाषामें प्रयुक्त है। लगता है प्रारंभिक कालका द्वितीयवर कालान्तरमें वैदिक भाषामें ही अल्पायासके कारण देवर के रूपमें व्यवहृत होने लगाादेवर शब्द आज भी इसी अर्थ में प्रयुक्त है।
(६६)विधवाः-इसका अर्थ होताहै पतिहीना स्त्री,वहस्री जिसका पति मर गया हो।५ यास्क इसके कई निर्वाचन प्रस्तुत करते हैं तथा इस क्रममें दूसरे आचार्योंके सिद्धान्तोंका भी उल्लेख करते हैं।(१) विधातृकाभवति८५ अर्थात् वह धारण करने
२१८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क