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वाला या पोषण करने वाला से रहित हो जाती है। इस निर्वचनके अनुसार विधवा शब्द में दो पद खण्ड हैं वि + घव, वि-विगत का वाचक है तथा घव घा धारणार्थे धातुसे निष्पन्न शब्द। (२) विधवनाद्वा अर्थात् पतिकी मृत्युसे वह कम्पित हो जाती है। इसके अनुसार इसमें वि + धू- कम्पने धातुका योग है। (३) विधावनाद्वेतिचर्मशिरा: अर्थात् आचार्य चर्मशिरा के अनुसार विधवा शब्द में वि +धात् धातुका योग है। पति की मृत्यु के बाद वह विशेष रूप से इधर-उधर दौड़ने वाली (जाने वाली) हो जाती है। पतिके अभावमें पति कुलसे पितृ कुल तथा पितृ कुलसे पति कुलमें जाने आने लगती है। पतिके अभावमें अपने भरणपोषण के लिए इधर उधर जाने वाली होती है। (४) धव इति मनुष्य नाम तद्वियोगात् ५ अर्थात् धव (मनुष्य) पति का वाचक है तथा उससे वियुक्त होने के कारण विधवा कहलाती है। इसके अनुसार वि-वियुक्त +धव = विधवा। डा. वर्मा के अनुसार यह निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिकोणसे शिथिल है लेकिन प्रसिद्ध निर्वचन है।६ वे विधवा शब्दको वियुक्त अर्थोंवाली भारोपीय वि + धे धातु से सम्बद्ध मानते हैं। अर्थात्मक दृष्टिकोणसे यास्कके सभी निर्वचन उपयुक्त हैं। चर्मशिराका मत भी अर्थात्मक दृष्टिसे संगत है। ध्वन्यात्मक दृष्टिते यास्कका द्वितीय निर्वचन जिसमें धुत् कम्पने धातुका योग है, उपयुक्त माना जाएगा। धव शब्दका प्रयोग वेद में पतिके अर्थमें प्रायः नहीं देखा जाता लेकिन कोष ग्रन्थोंमें धव शब्द पतिके अर्थ में पठित है। यास्कक र मय में धव शब्दका प्रचलन पतिके अर्थ हो गया होगा। अतः विधव, विधवा भाना गया। रोथ, ग्रासमान आदि विधवा शब्दको वियोगार्थक विध धातुसे निष्पन्न भानते हैं।७५ मारोपीय भाषा परिवारकी अन्य शाखाओंमें भी विधवा शब्द किंचित् ध्वन्यात्तर के साथ देखा जा सकता है-ग्रीक Vithees लैटि.-Viduo, Viduees अवे.-विधवा, जर्मनी withwe, अंग्रेजी-Widow संस्कृत विधवाका ही अन्तर्राष्ट्रीय रूप अन्य भाषाओंमें देखा जाता है। व्याकरण के अनुसार वि +धूञ् कम्पने + अच् (घ) + टाप् प्रत्यय कर विधवा शब्द बनाया जा सकता है।८० यास्कके निर्वचनसे पता चलता है कि यास्कके कालमें विधवाओंकी स्थिति अच्छी नहीं थी।
(६७) मर्य :- मर्य का अर्थ मनुष्य होता है। निरुक्त के अनुसार मर्यो मनुष्यो मरण धर्मा६५ अर्थात् वह मरने के स्वभाव वाला होता है। यह शब्द मृङ् प्राणत्यागे धातु से बना है। यह निर्वचन अर्थात्मक आधार रखता है। यहां मात्र अर्थ स्पष्ट करने की चेष्टा की गयी है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से यह निर्वचन उपयुक्त नहीं है। व्याकरण के अनुसार मृ
२१९: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क