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(ग) निरुक्तके तृतीय अध्यायके निर्वचनोंका मूल्यांकन
निरुक्तका तृतीय अध्याय मूलरूपमें निर्वचनके लिए प्रयुक्त हुआ है। इन निर्वचनोंमें नैघण्टुक काण्डके शब्दोंके दर्शन होते हैं। ज्ञातव्य है नैघण्टुक काण्ड तीन अध्यायोंमें विभाजित है। प्रथम अध्यायके अन्तर्गत परिमणित शब्दोंके निर्वचन निरुक्तके द्वितीय अध्यायमें किए गए हैं निघण्टुके प्रथम अध्यायमें परिगणित कुल ४१४ शब्दोंकी व्याख्या यद्यपि नहीं हुई है तथापि निरुक्तके द्वितीय अध्यायके सात पादोंमें उनके निर्वचनकी प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है।
निघण्टुके द्वितीय अध्यायमें भी नैघण्टुक शब्द ही है। इसमें कुल बाइस खण्ड हैं जिनमें कुल शब्दोंकी संख्या ५१६ है । पुनः निघण्टुके तृतीय अध्यायमें तीस खण्ड हैं जिसमें शब्दोंकी कुल संख्या ४०८ है । इस प्रकार निघण्टुके द्वितीय एवं तृतीय अध्यायके कुल खण्डोंकी संख्या ५२ तथा शब्दोंकी संख्या ९२४ हो जाती है। इन शब्दोंकी व्याख्या निरुक्तके तृतीय अध्यायमें हुई है।
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निरुक्तके तृतीय अध्यायमें कुल चार पाद हैं। प्रथम दो पादोंमें निघण्टुके द्वितीय अध्यायके शब्दोंके निर्वचन हुए हैं तथा अन्तिम दो पादोंमें निघण्टुके तृतीय अध्यायके कुल ४०८ शब्द व्याख्यात हैं। यद्यपि निरुक्तके तृतीय अध्यायके चारों पादोंमें क्रमश: १३, ४१, ३४ एवं ४२ शब्दोंकी ही व्याख्याकी गयी है। इससे स्पष्ट है कि निघण्टुके द्वितीय एवं तृतीय अध्यायकें सारे शब्दोंकी व्याख्या नहीं की गयी है। निघण्टुके द्वितीय एवं तृतीय अध्यायमें परिगणित शब्दोंकी कुल संख्या ९२४ है तथा निरुक्तके तृतीय अध्यायके चारों पादों में निर्वचनोंकी कुल संख्या १२९ है। इस प्रकार यास्कने निघण्टुके अन्तिम दो अध्यायोंके मात्र १४ प्रतिशत शब्दोंकी ही विवेचना की है। निघण्टुके द्वितीय एवं तृतीय अध्यायके बहुत से खण्डोंके नामोंका मात्र संकेत करके ही यास्क आगे बढ़ जाते हैं। १३० शब्दोंमें वैसे शब्द भी परिगणित हैं जो प्रसंगतः प्राप्त हैं। निघण्टु पढित खण्डों में मात्र संख्याका निर्देश कर कहीं तो उसके एक शब्दका ही निर्वचन प्रस्तुत किया गया है। कुछ खण्डके तो एक भी शब्द विवेचित नहीं हुए हैं केवल उसका संकेत भर किया है।
निरुक्तके तृतीय अध्यायमें निर्वचन के लिए प्रयुक्त शब्दोंकी संख्या १२९ हैं इसमें भाषाविज्ञान एवं भारतीय निर्वचन प्रक्रियाकै अनुसार निम्नलिखित निर्वचनोंको उपयुक्त माना जा सकता है- कर्म, अपत्य, अरण, रेक्ण, शेष:, गर्तः, श्मशान,
१९७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क