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कम्बल शब्दके वलका लोप होकर ही कम् वचा है। इस निर्वचन का आधार भौगोलिक एवं व्यवहार परक है। कम्बल भोजसे निष्पन्न कम्बोज शब्दके लिए एक अनुश्रुति प्रचलित है जिसके अनुसार वहांके निवासियोंका जीवन कम्बलमय दीख पड़ता है 14 (2) कमनीयभोजा वा” इसके अनुसार कम् कमनीयका वाचक है तथा उत्तर पद स्थित भोजा भुज् धातुसे निष्पन्न। कमनीय-कम् - भुज् - भोजाः, कम् - भोजाः कम्बोजाः । इस निर्वचनसे स्पष्ट होता हैकि वह देश प्रचुररत्नसे युक्त था तथा वहां कमनीय वस्तुओंका अधिक उपयोग होता था।” डा0 वर्मा कम्बोजके इस निर्वचनमें व्यंजन वर्णोंका समुचित विन्यास स्वीकार नहीं करते।" कम् + भुज - भोज - कम्बोजमें अल्पप्राणीकरण स्पष्ट भ का ब में परिवर्तन हुआ है । यास्कने अर्थात्मक दृष्टिकोणकी प्रधानता दी है फिर भी भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे महत्त्वपूर्ण माना जायगा ।
(40) कम्बल :- ऊर्णासे निर्मित वस्त्र विशेषको कम्बल कहते है । यास्कने इसके निर्वचनमें कहा है कि यह सुन्दर होता है या शीतार्त व्यक्तियोंका प्रार्थनीय होता है इसलिए इसे कम्बल कहा जाता है - कम्बलः कमनीयो भवति” कमनीय गुण विशिष्टके चलते कम्बल वना । कम्के बाद बल का आगम पद विकास माना जा सकता है डा० वर्मा इसमें व्यंजनगत औदासिन्य मानते है। वस्तुतः कमु कान्तौसे कम्बल मानने पर भी व्यंजन वर्णोंका उचित विन्यास प्रतीत नहीं होता । फलतः ध्वन्यात्मक दृष्टि से इसे उपयुक्त नहीं माना जायगा । इस निर्वचनका आधार अर्थात्मक एवं दृश्यात्मक है । व्याकरणके अनुसार इसे कम्ब् गतौ धातुसे कलच्” प्रत्यय करने पर कम्वति कम्व्यते वा कम्बलः बनाया जा सकता है ।
( 41 ) शवति:- यह एक क्रियापद है। यह गत्यर्थक शव् धातुसे निष्पन्न होता है तथा इस क्रियाका प्रयोग गमन अर्थमें कम्बोज आदि देशों में होता है । 8° मूल धातु रूप प्रकृति कहलाता है तथा उस धातुसे निष्पन्न शब्द विकृतिके नाम से अभिहित होता है। कुछ स्थानोंमें प्रकृति का प्रयोग होता है तथा कुछ स्थानों में विकृति का । शवति क्रियाका प्रयोग (गमन अर्थ) आर्य देशों में नहीं पाया जाता । यह शब्द प्रयोग गत वैशिष्टय स्थान विशेष पर आधारित होनेके कारण भौगोलिक महत्त्वको स्पष्ट करता है । व्याकरणके अनुसार इसे शव् गतौ + लट् तिप् - शवति बनाया जा सकता है ।
१५५ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क