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(56) मत्सर :- इसके सोम, द्वेषी, लोभ, कृपण आदि कई अर्थ होते है। यास्कने भी विभिन्न अर्थोमें इसके कई निर्वचन प्रस्तुत किए हैं। सोमके अर्थ में इसका निर्वचन प्रस्तुत करते हुए कहते हैंकि यह तृप्ति दायक होता हैमन्दतेस्तृप्ति कर्मण:' इसके आधार पर मत्सर शब्दमें तृप्त्यर्थक मदि धातुका योग है-मद-स-मत्सरः । मत्सर लोभका भी नाम है16 क्योंकि इस लोभके चलते मनुष्य धनके प्रतिमत्तवना रहता है-अभिमत्त एनेनधनं भवति17 इसके अनुसार भी इस शब्दमें मद धातुका योग है मद् - मत्त - मत्सरः । द्वेषीके अर्थमें भी मद् + सृ- मत्सर होगा इसके अनुसार मादयति जनम् या मदाय सरतिधावतिअसौ मत्सरः । यास्कके उपर्युक्त दोनों निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दुष्टिकोणसे उपर्युक्त हैं। डा0 वर्मा इसके अर्थगत आधार को स्वीकार नहीं करते हैं।18 आजकल मत्सर द्वेष, लोभ, मच्छड आदिके अर्थमें विशेषतया प्रचलित है। मत्सरसे वना मच्छड शब्द ध्वन्यात्मक संगतिसे युक्त है। इसके अर्थमें गुण सादृश्य या लक्षणाका योग माना जा सकता है। लौकिक संस्कृतमें इसके अर्थका विस्तार पाया जाता है। व्याकरणके अनुसार इसे मदि हर्षे धातुसे+ सर: कर बनाया जा सकता है।
(57) पय :- पयःका अर्थ दूध एवं पानी होता है।120 यास्क पयःके दो निर्वचन प्रस्तुत करते हैं। (1) पयः पिवतेर्वा" यह पीया जाता है। इसमें पा पाने धातु का योग है। पाधातुके कर्मके रूपमें इस शब्दका प्रयोग प्राप्त होता है। (2) पयः प्यायतेर्वा" इसके पान करनेसे ओज वुद्धि तथा बलकी वृद्धि होती है। पीतं सत् यत् ओजो वुद्धि वलादिकं वर्धयति तत् पयः । इसके अनुसार पयस् शब्दमें प्यायी वृद्धौधातुकायोग है। इसमें पोषकताके कारणही प्याय् धातुका प्रयोग पाया जाता है। सभी निर्वचन दूध एवं पानी, दोनों अर्थोमें उपयुक्त हैं। इन सभी निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। व्याकरणके अनुसार इसे पा पाने+असुन्" प्रत्यय कर बनाया जा सकता है।
(58) क्षीरम् :- इसका अर्थ होता है, दूध, जल |122 निरुक्तमें इसके निर्वचनमें कहा गया है। (1) क्षीरंक्षरते:12 इसके अनुसार क्षीर शब्दमें क्षरश्चोतने धातुका योग है। गाय आदिके स्तनोंसे जो क्षरण होता है उसे क्षीर दूध कहते है। (गवादीनां स्तनेभ्यः यत्क्षरति पतति तत्क्षीरम् ।) (2) घसेर्वा ईरो नामकरण:123 इसके अनुसार इसमें घस् धातु एवं ईर प्रत्यय है। घस् धातु भक्षण अर्थ में
___१६१ व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क