________________
विश्चकद्र तमाकर्षतीति विश्चकद्राकर्षः शब्द बनाया जा सकता है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे यह निर्वचन उपयुक्त नहीं है।
(50) कल्याणवर्णरूप :- यह सामासिक शब्द है- कल्याण वर्णस्येवास्य रूपम् । भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे उपयुक्त है।
(51) कल्याणम् :- कल्याणका अर्थ सोना होता है। यास्कका कहना है कि यह कमनीय होता है या सबसे प्रार्थनीय होता है इसलिए इसे कल्याण कहते है । कल्याणं कमनीयं भवति"इस शब्दमें कमु कान्तौ धातुका योग है। अर्थात्मक दृष्टिकोणसे तो यह उपयुक्त है लेकिन इसका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त नहीं।भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे इसमें कल्धातु मालूम पड़ता है जिसका अर्थ सुन्दर आदि होता है। कल्याण मंगलका भी वाचक है103 निरुजत्वकी प्राप्ति होना भी इसका अर्थ होता है जो मंगलके अर्थमें समाहित है। कल्यं नीरुजत्वमानयतीति कल्याणम् 104 व्याकरणके अनुसार इसे कल् + अण् + शब्दे+घञ्05 प्रत्यय कर बनाया जा सकता है।
(52) वर्ण :- इसका अर्थ रंग, द्विजादि जाति, अक्षर आदि होता है।106 वर्णके निर्वचनमें यास्कका कहना है कि यह अपने आश्रितोंको आवृत कर लेता है- वर्ण: वृणोते: इस शब्द कृश्करणे धातुका योग है- वृञ् + नः । नैयायिकों ने इसे गुण माना है- पराश्रितत्वं गुणत्वम् । इस निर्वचनका वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार यह शब्द वर्ण (वर्ण क्रिया विस्तार गुणवचनेषु प्रेरणेच)धातुसेच प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। वर्ण+धञ्वर्णः
(53) रूपम् :- इसका अर्थ सौन्दर्य, स्वरूप, आदि होता है। यास्कके अनुसार यह सबोंको रूचता है, अच्छा, लगता है इसलिए इसे रूप कहा जाता है- रूपं रोचतेःण इशब्दमें रूच् दीप्तौधातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे इसे संगत माना जायगा | व्याकरणके अनुसार इसे रूपु विमोहनेधातुसे अच् प्रत्यय कर रूप+ अच् – रूपम् । या रूच् + अम् कर भी इसे बनाया जा सकता है।
(54) निधि :- राशि । इसे शेवधिः कहकर स्पष्ट किया है। सुखकी
१५९ · व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क