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शब्दके निर्वचन करनेमें ध्वन्यात्मक आधार ज्यादा समीचीन मालूम पड़ता है। शेष निर्वचनों का अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार स्पृश् धातुसेनि प्रत्यय कर पृश्निः बनाया जा सकता है।
(91) नाक:- नाकका अर्थ आदित्य होता है। निरुक्तके अनुसार (1) नेता रसानाम् अर्थात् वह रसोंको ले जाने वाला होता है। इसके अनुसार इस शब्दमें नी धातुका योग है। (2) नेता भासाम् अर्थात् यह प्रकाशको ले जाने वाला होता है। (3) इसके अनुसार भी इसे नी प्रापणे धातुका योग है। (3) ज्योतिषां प्रणयः अर्थात् यह ग्रहमण्डलोंको घुमाने वाला है। इसके अनुसार भी इसमें नी धातुका योग है। द्वितीय निर्वचन आकृति मूलक है। अंतिम निर्वचन भौगोलिक महत्त्व रखता है। ध्वन्यात्मक दृष्टिसे ये निर्वचन उपयुक्त नहीं हैं। अर्थात्मक आधार सभी निर्वचनोंके उपयुक्त हैं। नाकका अर्थस्वर्गभी होता है। लौकिक संस्कृतमें नाकका अर्थ स्वर्ग ही प्राप्त होता है। नाकका अर्थअन्तरिक्ष भी होता है। स्वर्गके अर्थमें नाक: न अकम् अस्मिन्निति नाकः' अर्थात् अकका अर्थ दुःख होता है। जहां दुःख नहीं हो, सुख ही सुखहो उसे नाक कहा जाता है। नाकका अर्थ द्यु लोक भी होता है - कमिति सुखनाम तत् प्रतिषिद्धं प्रतिषिध्येत 7 अर्थात् कम्का अर्थ सुख होता है। इसके विपरीत अकमका अर्थ दुःख होगा । न+अक-नाक, जहां दुःखका अभाव हो।धुलोकमें थोड़ाभी दुःख नहीं होता । (न वा अमूं लोक गतवते किंच नासुखम् पुण्यकृती ह्येव तत्र गच्छन्ति ।)17 न+ अक-नाकः ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारसे उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे इसे ही संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार इसे न + अक:-नाक: बनाया जायगा। व्याकरण सम्मत व्याख्यामें यास्कके निर्वचनही आधार हैं।
(92) विष्टप् :- इसका अर्थ आदित्य होता है। निरुक्तमें इसके लिए कई निर्वचन प्राप्त होते है- (1) आविष्टो रसान्!” अर्थात् वह रसोंमें आविष्ट है। इसके अनुसार इस शब्दमें विश्प्रवेशने धातुका योग है। (2)आविष्टो भासं ज्योतिषाम्।” अर्थात् ग्रहोंके प्रकाशके प्रति लगा हुआ है। इसके अनुसार भी इसमें विश्धातुका योग है। (3) आविष्टोभोसेति'" अर्थात् यह दीप्तिसे आविष्ट होता है। इसके अनुसार भी विष्टप् शब्दमें विश् धातुका योग है। विश् धातु से विष्टप शब्द माननेमें ध्वन्यात्मक आधार संगत है। विश+क्त करना
१७४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क