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है। ध्वन्यात्मक दृष्टिसे यह उपयुक्त है यास्क अर्थ भिन्नताके प्रदर्शनमें ही कई निर्वचन प्रस्तुत करते है। व्याकरणके अनुसार काशृ दीप्तौ धातुसे क्थन् प्रत्यय कर काष्ठा बनाया जा सकता है। काशन्ते दीप्यन्ते इति काष्ठा काशते इति काष्ठा अन्यत्र भी प्राप्त होता है।214
(97) शरीरम् :- शरीरका अर्थ देह होता है। निरुक्तमें इसके दो निर्वचन प्राप्त होते हैं 1- शरीरं शृणाते:12 अर्थात् शरीर शब्द शृञ् हिंसायाम् धातुसे बनता है क्योंकि शरीरकी हिंसा होती है। शृ- श्र + ईरम् - शरीरम् । 2) शम्नाते अर्थात् शरीर शम् उपशमे धातुसे बनता है क्योंकि शरीरका उपशमन (मरण) होता है। ध्वन्यात्मक आधार पर प्रथम निर्वचन उपयुक्त है। ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार दोनोंका संगत है शरीरके हिंसासे तात्पर्य प्राचीन कालकी वलिसे है। प्रथम निर्वचन भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार शृ हिंसायाम् धातुसे ईरन् प्रत्यय कर शरीरम् शब्द बनाया जा सकता है।
(98) दीर्घम:- दीर्घका अर्थ आयत या बड़ा होता है। निरुक्तमें- दीर्घ द्राघतेः अर्थात् दीर्घ शब्द द्राघ आयामे धातुसे निषन्न होता है, क्योंकि यह आयामसे युक्त होता है। यह निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है।भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे यह निर्वचन उपयुक्त है।व्याकरणके अनुसार इसे दृ विदारणे धातुसेक्त प्रत्यय करने पर दृ (वाहुलकाद्धक) + क्त-दीर्घ बनाया जा सकता है। यास्क निर्दिष्ट द्रा वैदिक एवं प्राचीन है।
(99) तमस् :- तमःका अर्थ अंधकार होता है। यास्कके अनुसार तमस्तनोते:218 अर्थात् यह शब्द तनुं विस्तारेधातुसे बनता है क्योंकि वह विस्तृत होता है। ध्वन्यात्मक आधार पूर्ण संगत नहीं। व्याकरणके अनुसार इसे तमु ग्लानौ धातुसे असुन प्रत्यय कर तमस् बनाया जा सकता है-तम् + अस्तमस्।
(100) आशयत् :- यह एक क्रिया पद है। इसका अर्थ होता है बैठाया या फैलाया। निरुक्तके अनुसार आशेते:218 अर्थात् यह शब्द आङ् पूर्वक शीङ् स्वप्ने धातुसे बनता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार आङ् + शीङ् + लड् प्रथम पुरुष एक वचनमें आशयत्
१७७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क