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धातुसे ण्यत् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। यह भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है।
(46) दण्डः:- दण्डका अर्थलाठी या सजा होता है।" यास्कके अनुसार दण्डसे ही विश्वकी व्यवस्था स्थिर है इसकेलिए दण्ड शब्द धारणार्थक दद् धातुसे निष्पन्न हुआ है-दण्डो ददतेर्धारयतिकर्मणः यास्क आचार्य औपमन्यवके विचारको भी उपस्थापित करते हैं। उनके अनुसार दण्ड शब्द दम् उपशमे धातुसे निष्पन्न होता है- “दमनात् दण्ड:- जिससे दुष्टोंको उपशमन किया जाय, या दवाया जाय उसे दण्ड कहते हैं। इसे (अदान्तं दमयति येन असौ दण्डः) ऐसा विग्रह किया जा सकता है। गौतम धर्म सूत्रमें भी दमनके कारणही दण्ड कहा गया है। आचार्यऔपमन्यवका निर्वचन भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। दम् उपशमेधातुसे दण्ड शब्द मानने पर ध्वन्यात्मक एवंअर्थात्मक आधार उपयुक्त ठहरता है। यास्कका निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिसे उपयुक्त नहीं है। व्याकरणके अनुसार इसे दण्ड् निपातने धातुसे अच् प्रत्यय कर या दमु उपशमे धातुसे ड" प्रत्यय कर बनाया जा सकता है।
(47) कक्ष्या :- इसका अर्थ होता है घोड़ेको कसनेकी रस्सी जिसे लोक भाषामें पेटारा कहा जाता है। यास्क इसके कई निर्वचन प्रस्तुत करते हैं- (1) कक्षं सेवते यह कक्षका सेवन करती है। इसमें कक्ष-कक्ष्या (2) कक्षो गाहते क्स इति नामकरण: यह शब्द विलोडनार्थक गाहूधातुसे क्स प्रत्यय करने पर बनाता है। यह वगलमें किसी वस्तुको विलोडन करता है या दवाता है। गाह् + क्स आद्यन्त विपर्यय करने पर कक्ष्या शब्द बनता है। (३) ख्यातेर्वानर्थकोऽभ्यासः । प्रकथनार्थक ख्या धातुका ही अनर्थक अभ्यास बनकर कक्ष्या शब्द बनता है-ख्य + ख्य-कंख्य-कक्ष्य। (4) किमस्मिन् ख्यानमितिवा अर्थात् बगलमें क्या ख्यापनीय है इसके चलते कक्ष्या कहलायीकिम् + ख्या कक्ष्या । (5) कर्षतेर्वा यह शब्द कष् घर्षणे (खुजलाना अर्थ वाले) धातुसे बना है। नित्य-कालं ह्यसौ नखैः कष्यते यतः कक्ष्यः अर्थात् नित्य यह नखों से खुजलाया जाता है इसीलिए इसका नाम कक्ष्य पड़ा। कक्ष्ये भवा कक्ष्या तत्सेवते इस प्रकार का सूत्र यास्क के समय में रहा
१५७: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क