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(42) शव :- शवका अर्थ मुर्दा या मृतक होता है । शवका प्रयोग मुर्दाके अर्थमें आर्य देशोंमें ही होता है। यह शब्द गत्यर्थक शवति क्रियाकी विकृति है-शवतीति शवः । भाषा विज्ञानके अनुसार इसे स्थानीय प्रभाव कहा जा सकता है। इस शब्दमें भौगोलिक आधार स्पष्ट है। शवको शु गतौसे भी बनाया जा सकता है क्योंकि शूर शब्दके निर्वचनमें यास्क इसी शु गतौ धातुका संकेत करते है- शूरः शवतेर्गतिकर्मणः ।' शब्दोंके प्रयोग विशेष को स्पष्ट करनेके लिए यास्कने इस शब्दको उपस्थापित किया है। व्याकरणके अनुसार इसे शव्धातुसे अच् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है।
(43) दाति:- यह एक क्रियापद है। यह दाप् लवणे धातुके प्रथम पुरूष एक वचनका रूप है। काटना अर्थमें इसका प्रयोग प्राच्य देशोंमें होता है। यह प्रकृति है अर्थात् धातुसे निष्पन्न क्रिया रूप । दाप् + लट् तिप्-दाति । शब्दोंके अर्थ की प्रसिद्धिमें भौगोलिक आधारको स्पष्ट करनेके लिए यास्कने इसे उपस्थापित किया है। भाषा वैज्ञानिक एवं व्याकरणकी दृष्टिसे यह उपयुक्त है।
(44) दात्रम् :- इसका अर्थ होता है लकड़ी आदि काटने के लिए प्रयोगमें लाया जाने वाला औजार । लोक भाषामें इसे दांवी कहा जाता है। दात्र शब्द दापधातुसे निष्पन्न होता है। इसे हसुआ भी कहा जा सकता है। दात्रशब्दका प्रयोग दांवीके अर्थमें उत्तर देशमें भी होता है। यह दात्र शब्द दाति प्रकृतिकी विकृति है। दाति प्रकृतिका प्रयोग उत्तरी प्रदेशोंमें नहीं देखा जाता । दात्र शब्दको दाप् धातुसे मानने पर भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे भी उपयुक्त होगा। यास्कका उद्देश्य देश विशेषमें विकृतिका प्रयोग दिखलाना है। व्याकरणके अनुसार इसे दाप् लवणे धातुसे ष्ट्रन प्रत्यय कर बनाया जा सकता है।
(45) दण्ड्यः - यह तद्धित शब्द है। इसका अर्थ होता है जो दण्डके योग्य हो (दण्डमर्हतीति दण्ड्यः ) अथवा जो दण्डसे युक्त हो (दण्डेन सम्पद्यते इति वा) यास्क इस शब्दका उपस्थापन तद्धित एवं समास शब्दोंके निर्वचन सिद्धान्त प्रदर्शनमें करते हैं। इनके अनुसार इस प्रकारके शब्दोंके निर्वचनमें पूर्व खण्डका पहले निर्वचन करना चाहिए तथा उत्तर खण्डका तदनन्तर । दण्डयः पुरूषःमें दण्डयः पूर्व खण्ड है। दण्ड्य शब्द दण्ड् निपातने
१५६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क