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होता है इसके अनुसार इसका अर्थ होता है जिसका भक्षण किया जाय, जो खाया जाय। इस निर्वचनमें घस् धातुका ही इस्वीभूत रूप क्ष प्राप्त होता है-घस्-क्स्-क्ष + ईर्-क्षीरम् । यास्कके दोनों निर्वचनोंमें ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक उपयुक्तता है। पानी एवं दूध, दोनों अर्थोमें यह उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे यह निर्वचन सर्वथा संगत है। व्याकरण्के अनुसार इसे धस्लु अदने धातुसे ईरन् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है।124 घस् धातु स्थित अलोप तथा षत्व करने पर क्षीरम् शब्द बनेगा।
(59) उशीर :- इसके निर्वचनमें यास्कने कहा है क्षीरके जैसा उशीर शब्द भी बनेगा वश् कान्तौ + ईरन्से सम्प्रसारण करने पर उशीर बनेगा ।126 इसका भाषा वैज्ञानिक आधार उपयुक्त है। व का उ सम्प्रसारणका परिणाम है। व्याकरणके अनुसार वश् कान्तौ+ ईरन् प्रत्यय कर उशीर शब्द बनाया जा सकता है।126
(60) अंशु:- इसका अर्थ होता है सोम रस । निरुक्तमें इसके दो निर्वचन प्राप्त होते हैं (1) अंशुः शमष्टमात्रोभवति'3 इसके अनुसार अंशु शब्दमें शम् अव्यय + अशु व्याप्तौ धातुका योग है। शम् अव्यय सुखका वाचक है। इसके अनुसाार इसका अर्थ होगा- यजमानसे पीया गया वह सुखप्रद होता है। शम् + अश् – अश + शम् – अंशुः (2) अमनाय शं भवतीति वा इसके अनुसार इसका अर्थ होगा जीवनके लिए यह कल्याण कारक होता है। अंशुशब्दमें अम् +शुपदखण्ड अष्ट मात्रका वाचक हैं। इससे पता चलता है कि अम्का शम्में तथा शुका अश्में विकास हुआ है। उ प्रत्यय है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त है। इसकी अर्थात्मकता धार्मिक आस्था पर आधारित है। व्याकरणके अनुसार इसे अंश् + उ प्रत्यय कर बनाया जा सकता है।
(61) चर्म:- चर्मकाअर्थ चमड़ा होता है। यास्क इसके लिए दो निर्वचन प्रस्तुत करते हैं। 1- चर्म चरते। इसके अनुसार इसमें चर् गतिभक्षणयोः धातुका योग है- चर + मन् – चर्म | चर् धातुसे निष्पन्न मानने पर इसका अर्थ होगा जो सारे शरीरमें फैला हुआ हो। (2) उच्चूतं भवतीति वा इसके अनुसार चर्म शब्दमें घृतीहिंसा ग्रन्थनयोः धातुका योग है- नृत् + मन्
१६२ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क