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(23) नाधः :- इसका अर्थ होता है बन्धन रस्सी। हल बांधने वाली रस्सी को अभी भी मगही, भोजपुरी आदि क्षेत्रीय भाषाओं में नाधा कहा जाता है। इसमें वैदिक शब्दका मूल सुरक्षित है। यह शब्द णह् बन्धने धातुसे बना है क्योकि इससे बांधा जाता है। णधातु स्थित अन्ताक्षर ह काध वर्ण में परिवर्तन हो गया है। ह का ध में परिवर्तन अन्य शब्दों में भी द्रष्टव्य है- वह धातु से वधू गाह-गाधः आदि । यह निर्वचन सिद्धान्तके अनुकूल है। इसे भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे उपयुक्त माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें इसका प्रयोग प्रायः नहीं पाया जाता।
(24) गाध :- इसका अर्थ होता है विलोडन करने योग्य । यह शब्द गाह् विलोडने धातुसे निष्पन्न हुआ है। यहां गाह् धातुके अन्तिम अक्षर ह का ध में परिवर्तन हो गया है। यास्कने इस शब्द को अन्त व्यापत्ति के उदाहरणमें उपस्थापित किया है । गाह-गाध । निर्वचन सिद्धान्तके अनुकूल यह निर्वचन भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से भी उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार इसे गाध्+घञ् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है।
(25) वधू:- वधूके पत्नी, नवोढा स्त्री आदिअर्थ होते है। यह शब्द वह् प्रापणे धातुसे बना है। वह धातुका अन्तिम वर्ण ह का ध में परिवर्तन होकर वह वध ऊ वधू । वधूका शाब्दिक अर्थ होगा जिसे प्राप्त किया गया हो या जो प्राप्त करने योग्य हो। यास्क इस शब्दका उपस्थापन अंतिम वर्ण व्यापत्ति के उदाहारण में करते है। ह वर्ण काध में परिवर्तन वैदिक धातुओं में पाया जाता है। संस्कृतसे प्राकृत पुनः ध ध्वनि अपने मूल ह के रूपमें देखी जाती है यथा-वधू-वहू, मेघ-मेह आदि। इसके लिए प्राकृतमें एक सामान्य नियम हो गया है- ख, घ, थ,ध एवं भ संस्कृत की ध्वनियां प्राकृतमें ह हो जाती हैं।० यास्कका यह निर्वचनभाषा विज्ञानके अनुसार उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार इसे वह प्रापणे+काप्रत्यय कर वधू बनाया जा सकता है।
(26) मधु :- मधुका अर्थ शहद, पुष्परस, बसन्त ऋतु आदि होता है। " निरुक्त में मधु शब्दका प्रयोग सोमके अर्थमें हुआ है। माद्यते यह शब्द मदि हर्षे धातुसे बनता है। इसके पान करनेसे हर्ष उत्पन्न होता है। मद् धातुके अंतिम वर्ण द काध में परिवर्तन हो जाता है। इसे भाषा वैज्ञानिक शब्दों में महा
१४९ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क