________________
जाएगा। रूपात्मक आधार उस वस्तुका द्योतक हैं जिससे उस वस्तुके आकार प्रकार का परिदर्शन होता है। दृश्य शब्द दर्शनाथक दृश् धातु से बनता है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है जो देखा जा सके। नेत्रेन्द्रियसे सम्बन्ध प्राधान्यके चलते चाक्षुष विम्ब ग्राहिता ही दृश्यके अन्तर्गत समाविष्ट है।
दृश्य चाक्षुष प्रत्यक्षका परिणाम है। सभी ज्ञानेन्द्रियोंके पृथक्-पृथक् विषय हैं। इन्द्रियके सन्निकर्षसे उत्पन्न पदार्थके ज्ञानको हम प्रत्यक्ष कहते हैं। यद्यपि प्रत्यक्ष शब्दमें प्राधान्य व्यपदेशके चलते मात्र अक्ष इन्द्रिय का संकेत है लेकिन इसे समग्र इन्द्रियका वाचक माना जाता है। यही कारण है कि विभिन्न इन्द्रियोका पदार्थोंके साथ सन्निकर्ष होता है, सन्निकर्षके फलस्वरूप जिस अर्थका ज्ञान होता है वही प्रत्यक्ष है। इस प्रकार चाक्षुष, रासन, घ्राणज, श्रावण, त्वाचिक आदि प्रत्यक्ष क्रमशः चक्षु, रसना, घाण, श्रवण एवं त्वचा के पदार्थों के साथ सन्निकर्ष के ही परिणाम हैं। इन प्रत्यक्षोंमें चाक्षुष प्रत्यक्ष सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि चक्षु के साथ पदार्थों का सम्पर्क अपेक्षाकृत अधिक होता है। शब्दोंमें अर्थका अभिनिवेश दृश्यात्मक प्रत्यक्ष की भी अपेक्षा रखता है। फलत: निर्वचनके क्रममें दृश्यात्मक आधार भी प्रभावित होते हैं।
यास्कने निरुक्तमें निर्वचन प्रसंगमें दृश्यात्मक आधारका भी सहारा लिया है। निरुक्तके प्रथम अध्यायमें ही अक्षि, कर्ण आदि शब्द आते हैं। अक्षिके सम्बन्धमें कहा गया है कि ये अन्य अंगोंकी अपेक्षा व्यक्ततर होती है तथा कर्णके सम्बन्धमें कहा गया है कि इसका द्वार कटा होता है। निश्चय ही ये दोनों निर्वचन दृश्यात्मक आधार रखते हैं तथा इससे उसके स्वरूपका भी पता चलता है । पृथिवी खम् ६ तित्तिरि, कपिंजल', ऋक्ष, सुपर्ण१०, हरि : ११, स्वसराणि १२ उरु १३, नक्ता १४ कला १५, उषा१६, केशी१७, आदि शब्दोंके निर्वचन भी दृश्यात्मक आधार रखते हैं।
"
"
उपर्युक्त परिशीलन से स्पष्ट होता है कि यास्कके निर्वचनोंमें दृश्यात्मक आधारको भी अपनाया गया है। भले ही इस प्रकारके निर्वचनोंकी संख्या कम है। -: संदर्भ संकेत :
१. नि. १४, २. निवासात् कर्मणो रूपात् मंगलाद्वाच आशिषः । यदृच्छयोपवशनात्तथा मुष्यायनाच्च यत्।। वृ. दे. - १।२५, ३. इन्द्रियार्थसन्निकर्षोत्पन्नं ज्ञानं प्रत्यक्षम् - न्या शा. ( प्रत्यक्ष खण्ड), ४. नि. १ ३,५. नि. १ ४, ६ . नि. ३1३, ७. नि. ३।४, ८ . नि. ३ । ४, ९. नि. ३ ४ १०. नि. ४ १ ११.नि. ४ ३, १२.
१२२ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क