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भाषा विज्ञान (भो.ना. ति.) पृ. ३३, ७. नि. ५।४, ८. नि. ६।३, ९. नि. ९।२ (ड.) सादृश्य एवं यास्कके निर्वचन
सादृश्य शब्द समानका द्योतक है। सदृशका भाव सादृश्य कहलायेगा। सदृश होनेके कई आधार हैं जिनमें गुण, कर्म, रूप, ध्वनि आदि सादृश्य प्रधान रूपमें आते हैं। यास्कने उपमा शब्दके विवेचनमें आचार्य गार्यके मतका उल्लेख किया है। पुनः “गायेने उपमा शब्दके प्रसंगमें सदृश शब्दका उल्लेख किया है. अथात उपमाः। यदतत्तत्सदृशमिति गार्ग्य:।' अर्थात् उपमा वह है जो वह न हो लेकिन उसके समान मालूम पड़ता हो।
संस्कृत साहित्यमें धर्मकी समानताको सादृश्य कहा गया है। उपमामें चार तत्त्व होते हैं. उपमान, उपमेय ; साधारण धर्म एवं उपमा वाचक शब्दा हम किसी वस्तुकी उपमामें साधारण धर्मकी समानता अवश्य देखते हैं। अगर साधारण धर्म में समानता न हो तो वह उपमाके योग्य नहीं। पुरुष सिंहकी तरह शूर है। इस वाक्यमें पुरुष तथा सिंहकी शूरतामें सादृश्य होता है दोनोंकी एक सी स्थिति नहीं होती मात्र धर्मकी समानता होती है। उपमानके चयनमें हम ध्यान रखते हैं कि साधारण धर्ममें समानता हो। यह साधारण धर्म उपमान एवं उपमेयमें सामान्य रूप से स्थित रहे। यास्क धर्मकी समानताको स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि सिंह एवं व्याघ्र पूजा परक अर्थ रखते हैं। यथा-सिंहो देवदत्तः से देवदत्त सिंह सदृश वीरता गुणसे युक्त है, की प्रतीति होती है। इसी प्रकार पुरुषव्याघ्रका तात्पर्य पुरुष व्याघ्र के समान वीर है, धोतित होता है। निन्दा परक अर्थमें श्वा एवं काकका प्रयोग सादृश्यके लिए चुना जाता है। लौल्य आदि दोषसे युक्त व्यक्तिको अयं श्वा तथा धृष्टता आदि दोषके चलते-अयं काकः कहते हैं। श्वा में लौल्य दोष हैं तथा काक में धृष्टता आदि। इन दोषोंका सादृश्य यहां प्रतिविम्बित करनेके लिए पशु एवं पक्षियोंका सहारा लेते हैं जिससे स्थिति अत्यधिक स्पष्ट होती है।
निर्वचनमें भी यास्क सादृश्यको आधार मानते हैं।किसी शब्दके निर्वचनमें किसी प्रकारकी समानत हो सकती है। यह समानता गुण कर्म,रूप,ध्वनि आदिसे सम्बद्ध हो सकती है।यास्कविलक्षण अर्थको द्योतित करनेवाला अद्भुत शब्दका निर्वचन अभूत के सादृश्य पर करते हैं। अभूत् का अर्थ होता है जो नहीं हुआ है तथा अद्भुतमें भी कुछ इसी प्रकारकी बात होती है जिसके चलते हम उसे विलक्षण मानते हैं। खल शब्दके
११५: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क