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(३२) अश्व :- अश्वका अर्थ घोड़ा होता है। निरुक्तके अनुसार अश्व मार्गका अशन (व्याप्त) करने वाला है या अधिक भोजन करने वाला होता है. 'अश्नुते अध्वानम् , महाशनो भवतीतिवा९२ प्रथम निर्वचन में अशूङ् व्याप्तौ धातु है तथा द्वितीय निर्वचनमें अश् भोजने धातु। यास्कके ये निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिसे उपयुक्त हैं। यास्क अपने पूर्व पक्षियोंके इस प्रश्नका समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। यदि सभी नाम आख्यातसे उत्पन्न होंगे तो मार्गको व्याप्त करने वाले सभी अश्व कहे जायेंगे? इसके.समाधानमें वे कहते हैं कि यह तो लोक व्यवहारके आधार पर आधारित है। लोक प्रसिद्धि जिस शब्दकी जिस अर्थमें होगी उससे वही अर्थ ज्ञात करायगा। व्याकरणके अनुसार इसे अशू व्याप्तौ + क्वन्९३ = अश्व, अश्भोजने +क्वन्= अश्वः बनाया जाएगा। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से इसे आख्यातज सिद्धान्त पर आधरित माना जायगा।
(३३) तृणम् :- इसका अर्थ तिनका होता है। धातुज सिद्धांतके विरोधियोंका तर्क है कि जो वस्तु चुभ जाय उसे इस आधार पर तृण कहा जायगा। यत् किंचित् तृन्द्यात् तृणं तत्'९४ तृद्धातु से तृण शब्द माना जाता है। इसके समाधानमें यास्कका कहना है कि सभी छेद करने वाले पदार्थ तृण नहीं कहे जाते अपितु लोक व्यवहारके कारण तृण विशेष ही उसका वाचक होता है। तृण शब्द आख्यातज होने पर भी अस्पष्ट व्युत्पत्ति वाला है। फलतः यास्कने इसके लिए निर्वचन नहीं प्रस्तुत किया। व्याकरणके अनुसार तृण् अदने + घञ् प्रत्यय कर बनाया जाता है।९५
(३४) पुरुष :- पुरुष मनुष्य का वाचक है। निरुक्तों इसके लिए कई निर्वचन प्राप्त होते हैं १-शरीर या बुद्धिमें विषयोपलब्धिके लिए रहता है इसलिए पुरुष कहलाता है- 'पुरुषः पुरुषादः ९६ इसके अनुसार पुरुष शब्द में पुरु+सद् (षदल विषरणगत्यवसादनेषु) पुरिषादः पुरुषः। २- विशेष कर शरीरमें शयन करनेके कारण पुरुष कहलाता है- 'पुरिशयः ९७ इसमें पुर +शी स्वप्ने धातुका योग है। पुर +शीङ् = पुरिशय पुरुष: (पुरि शरीरे शेते इति पुरिशयः पुरुषः) इन निर्वचनों से पता चलता है कि पुरुष जीवात्माका वाचक है।९८ ३. पुरुषके व्यापक होनेके कारण सम्पूर्ण जगत् पूर्ण है। पूरयते' इसके आधार पर पुरुष शब्दमै पुरी आप्यायने धातुका योग है। यह निर्वचन परमात्माके अर्थको द्योतित करता है।
उपर्युक्त सभी निर्वचन अर्थात्मक दृष्टि से उपयुक्त हैं। (पूर्यते अष्टभिधातुभिरिति पुःशरीरं तस्मिन् पुरि शुभाशुभकर्मफलभोगाय शेते अथवा सीदतीति पुरिशयः पुरिषदोवा)
१३३ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क