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(ख) निरूक्तके द्वितीय अध्यायके निर्वचनों का मूल्यांकन
निरुक्त के द्वितीय अध्यायका मूल प्रतिपाद्य निर्वचन है। द्वितीय अध्यायके प्रथम पादमें निर्वचनकी प्रक्रियाका प्रतिपादन किया गया है। निर्वचन सिद्धान्तोंकी स्थापनामें लगभग 59 शब्द विवेचित है। इनमें कुछ शब्द तो प्रसंगतः प्राप्त हैं तथा कुछ विभिन्न सिद्धान्तोंके दर्शनार्थ।
द्वितीय अध्यायका द्वितीय पाद निघण्टुके शब्दोंकी व्याख्यासे आरंभ होता है। निघण्टुका प्रथम अध्याय जिसमें कुल 17 खण्ड एवं 414 शब्द हैं, के निर्वचनका प्रारंभिक स्थल द्वितीय पाद ही है। निघण्टुके प्रथम अध्याय के प्रथम खण्डमें पृथिवी के 21 नाम संकलित हैं। निरुक्तके द्वितीय पादमें इन नामोंका निर्वचन हुआ है। यास्कने यहां पृथिवीके इक्कीस नामोंका.निर्वचन प्रस्तुत नहीं कर इनके कुछ शब्दोंको समताके आधार पर ही निर्वचन कर लेना चाहिए-यह कहकर छुट्टी ले ली है। इन शब्दों के निर्वचन क्रममें प्रसंगतः प्राप्त अन्य शब्द भी निर्वचनके प्रकाशसे अलग नहीं रहे। द्वितीय पादमें मात्र उन्नीस शब्द विवेचित हैं।
निघण्टुके प्रथम अध्यायके कुल 414 शब्दोंके निर्वचनकी प्रक्रिया यास्क इस अध्यायके द्वितीय पादसे लेकर सप्तम पाद तक सम्पन्न कर लेते हैं। ६ यातव्य हैं वे सारे शब्द विवेचित नहीं होते। निघण्टुके प्रत्येक खण्डसे कुछ शब्दोंको उपस्थापित कर उस खण्डकी समाप्ति कर देते हैं। इतना अवश्य हैकि इस प्रसंग में अन्य प्राप्त शब्दोंकी व्याख्या भी हो जाती है। निघण्टुके प्रथम अध्यायमें 17 खण्ड हैं जिनमें 17 शब्दोंके पर्यायवाची शब्द संग्रहित है।
निरुक्तके द्वितीय अध्यायमें कुल निर्वचनोंकी संख्या 151 है। कुल सात पदोंमें क्रमशः 56, 19, 15, 9, 13, 22, एवं 17 शब्दोंके निर्वचन प्राप्त होते हैं। द्वितीय पादसे सप्तम पाद तक जिनमें नैघण्टुक शब्दोंकी व्याख्या हुई है, कुल 94 शब्द है। ये सारे शब्द निघण्टुके प्रथम अध्यायमें पठित नहीं है बल्कि कुछ प्रसंगतः प्राप्त भी है।
इस अध्यायमें प्राप्त निर्वचन जो भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे तथा निर्वचन प्रक्रियासे पूर्ण है, निम्नलिखित है : प्रत्तम्, अवत्तम्, स्तः, सन्ति, गत्वा, गतम्, जग्मतुः जग्मुः, राजा, दण्डी, तत्त्वायामि, तृचः, ज्योतिः, घनः, विन्दु, वाट्यः,
१४१ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क