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भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे भी यह सर्वथा संगत है।
(२८) शिशिरम् : शिशिर ऋतु विशेषका नाम है। भारतीय पद्धतिके अनुसार माघ एवं फाल्गुन महीनेसे होने वाली ऋतुको शिशिर ऋतु कहते हैं। यास्कके अनुसार यह शब्द हिसार्थक शृ धातुसे अथवा हिंसार्थक शम् धातुसे निष्पन्न माना गया है. 'शृणाते: शम्नातेर्वा'८२ शिशिर ऋतुमें प्राय: वृक्ष आदि म्लान हो जाते है। यास्कके निर्वचनोंमें अर्थात्मक आधार संगत है। इसमें ध्वन्यात्मकताकी रक्षा पूर्ण रूपमें नहीं हो पायी है। व्याकरणके अनुसार इसे शश् प्लुतगत्यौ धातुसे किरच् प्रत्यय८५ (उपधायां इत्वंच निपात्यते) कर बनाया जा सकता है। माषा विज्ञानके अनुसार इसे पूर्ण संगत नहीं माना जा सकता।
(२९) गिर :- वर्तमान समयमै गिरः का अर्थ वाणी होता है। लेकिन वैदिक संस्कृतमें गिर उसी वाणीको रहा जाता है जो स्तुतिके लिए प्रयुक्त होती है। यास्क इसके निर्वचनमें स्तुत्यर्थक गृ धातुका योग मानते हैं. 'गिरोमृणाते:-९ गृ-गिरः। वैदिक कालमें स्तुत्यर्थक गिर शब्द बादमें वाणीके अर्थमें प्रयुक्त होने लगा। यह इस शब्दकी अर्थोत्कर्षता है। यास्क का यह निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार से युक्त है। व्याकरणके अनुसार इसे गृ शब्दे धातुसे क्विप८७ प्रत्यय कर बनाया जा सकता
(३०) नरकम् :- नरक सर्वाधिक खराब, अशोभन एवं यातना पूर्ण स्थानका नाम है, जहां दुराचारी लोम तथा पुण्यहीन लोग निवास करते हैं। यास्कका कहना है कि जिसमें निम्न गमन होता है८८ तथा जहां रमणीय स्थान थोड़ा भी नहीं होता. न्यरकम् नीचैर्गमनम् नाऽस्मिन् रमणं स्थानम् अल्पमपि अस्तीतिवा'८६ प्रथम निर्वचनमें नि उपसर्ग तथा ऋगतौ धातु + क प्रत्यय है। नि+ऋ+कम् नि+अ+कम् = न्+ अर + कम्=नरकम्। द्वितीय निर्वचन में न + रम् + क = नरक शब्द है। यास्कका नरक संबंधी दोनों निर्वचन अर्थात्मक आधारसे पुष्ट है। ध्वन्यात्मक आधार आंशिक संगत है। व्याकरणके अनुसार इसे नृ + कन् ८९ . नर+अक = नरक बनाया जा सकता है।
(३१) सुराः-सुराका अर्थ मदिरा होता है। इसके पान करनेसे बुद्धिका सन्तुलन बिगड़ जाता है। यास्ककेअनुसार यह अनेक द्रव्योंसे चुलायाजाता है१०. सुरा सुनोते:८९ इस शब्दमें षुञ् अभिषवे धातु का योग है इस निर्वचन का अर्थात्मक एवं ध्वन्यात्मक आधार संगत है। फलत: यह भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार यह सु+रा दाने = सुरा,या सु + रै शब्दे+अ११ प्रत्यय करने पर बनता है।
१३२ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क