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कर देता है।१३ अर्थात् अवर्षणके चलते शुभ कर्म करनेकी क्षमता नष्ट हो जाती है। इसी नष्ट करनेकी क्षमताके कारण दस्यु शब्द शत्रु, मेघ तथा वृत्रके लिए प्रयुक्त हुआ है।१४ सम्प्रति दस्यु डाकू अर्थको अभिव्यक्त करता है। डाकूमें भी नष्ट करना गुण सादृश्य है। सिनीवालीका अर्थ देवपत्नी तथा अमावास्याका पूर्व भाग है। सिनीवालीका शाब्दिक अर्थ प्रशस्त अन्न वाली या प्रशस्त पर्व वाली है। सिनीवालीके दो अर्थ सादृश्यके ही परिणाम हैं।५ किंशुकका अर्थ पलाश पुष्प होता है। निरुक्तमें किंशुक चमकीलाके अर्थ में भी प्रयुक्त है। किंशुक शब्दका निर्वचन प्रकाशनार्थक कुंश् धातुसे माना गया है। सूर्य रश्मिके विशेषणके रूपमें भी किंशुक शब्दका प्रयोग हुआ है।१६ निश्चय ही यहां रूप सादृश्य है।
इस प्रकार यास्कके निरुक्तमें अनेक ऐसे शब्द हैं जिनके निर्वचनमें सादृश्य का सहारा लिया गया है। वस्तुतः अर्थ बोधके कारणोंमें सादृश्यकी भी मान्यता है। अर्थ प्रकाशनार्थ ही निर्वचन किए जाते हैं।
__-: सन्दर्भ संकेत :१. नि. ३।३, २. यत्किंश्चिदर्थजातंतदपि तत् सरूपं भवति- नि.दु.वृ. ३।३, ३. नि. ३।४, ४. नि. १।२, ५. नि. ३।२, ६. नि. ३१४, ७. नि. ४।३, ८. नि. ४।३, ९. नि.६।४, १०. नि.६।४, ११. नि. ६६, १२. नि. ७।३, १३. नि. ७६, १४. नि. ५।२, १५. नि. ११।३, १६. नि. १२।१. (च) इतिहास आदि आधार एवं यास्कके निर्वचन
इतिहास व्यतीत वृत्तोंका अन्वाख्यान है। निश्चय ही आजकी बातें भविष्य के लिए पुरानी हो जाती हैं। भूतकालके इतिवृत्तोंका भी अपना महत्त्व है। वे इतिवृत्त मानवके साथ किसी न किसी रूपमें सम्पृक्त रहते हैं। शब्दोंके प्रयोगमें मानव की ही मुख्य भूमिका होती है। अर्थाववोधके लिए मानव शब्दोंका आश्रय ग्रहण करता है। मानव द्वारा प्रयुक्त शब्द किसी न किसी रूपमें आधारान्वित होते हैं। उन आधारोंमें इतिहासका भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। शब्दोंके निर्वचनके समय उसके अर्थको ध्यानमें रखना निर्वचनकारका प्रधान उद्देश्य होता है। कुछ शब्दोंके निर्वचनमें इतिहासका भी सहारा लेना पड़ता है। यास्कने निर्वचनके क्रममें इतिहासका सहारा लिया है।
निरुक्तके प्रथम अध्यायमें शक्वरी शब्दके निर्वचन क्रममें यास्क इतिहासका भी सहारा लेते हैं. शक्वर्यः ऋचः शक्नोतेः तद्यद् आभित्रमशकद् हन्तुं तच्छक्वरीणां शक्चरीत्वमिति विज्ञायते। अर्थात् शक्चरी ऋचा को कहते हैं क्योंकियह शक् धातुसे
११७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क