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निर्वचनमें यास्क कहते हैं कि खल संग्रामका भी वाचक है तथा खलिहानका भी। खलते ; स्खलतेवा। अर्थात् खल शब्द मथनार्थक खल धातु से या हिंसार्थक स्खल् धातुसे निष्पन्न होता है संग्राममें शत्रु मथे जाते हैं या शत्रुओं की हिंसा होती है इसी प्रकार खलिहानमें भी अन्न मथे जाते हैं या चूर-चूर किए जाते हैं। यहां अर्थ सादृश्य स्पष्ट है। कपिंजल शब्दके निर्वचनमें - कपिरिव जीर्णः तथा कपिरिव जवते कहा गया है। इसके अनुसार कपिंजल शब्दमें रंगसादृश्य एवं गति सादृश्य स्पष्ट है। कजिलका वर्ण वृद्ध कपिके तुल्य होता है तथा उसकी गति भी कपिके समान होती है। अकूपारका अर्थ सूर्य एवं समुद्र होता है। निरुक्तके अनुसार अकूपारो भवति दूरपारः, अकूपारो भवति महापार : सूर्य बड़े रास्तेको पार करने वाला होता है समुद्र भी बड़ा पार वाला होता है। यहां समुद्र अर्थ सूर्यके सादृश्य पर आधारित है। हर शब्द हृ धातुसे निष्पन्न होता है जिसका अर्थ होता है हरण करना। ज्योति, उदक, लोक तथा रुधिरको हर कहा जाता है। ज्योति अन्धकारको हरण करती है जलको मनुष्यादि आहरण करता है, लोक पुण्य क्षीण होने वाले मनुष्योंको स्वर्गसे हरण करता है तथा रुधिर क्षीणताको हरण करता है। दिनको भी हर कहा जाता है क्योंकि यह अन्धकारको हरण करता है। यहां कर्म सादृश्य स्पष्ट है।
स्कन्ध शब्दके निर्वचनमें स्कन्धो वृक्षस्य समास्कन्नो भवति। अयमपीतर: स्कन्ध एतस्मादेव आस्कन्नं काये। वृक्षका स्कन्ध (डाल) वृक्षसे लगा होता है। शरीरका कन्धा भी इसी सादृश्यके कारण कन्धा कहलाता है क्योंकि वह शरीर पर लगा हुआ होता है। ऊध: का अर्थ गौ का थन तथा रात्रि दोनों होता है। गो का थन दूध देता है तथा रात्रि ओसको देती है। रसके देनेकी समानताके चलते रात्रिको अध: कहा जाने लगा।१० शाखा वृक्ष की डाल एवं वंश दोनो का वाचक है जिस प्रकार शाखायें फैलती हैं, उसी प्रकार संतान आदि रूप वंशभी फैलता है। नैचाशाख शब्दके निर्वचन प्रसंगमें यास्क इसे स्पष्ट करते हैं।११ यहां भी सादृश्य स्पष्ट है।
ककुप् उष्णिक् छन्दका एक भेद है। इस छन्दके मध्य स्थित पादोंमें कुछ वर्ण अधिक होते हैं परिणाम स्वरूप यहछन्द मध्यसे ऊपर कुछ उभरासा होता है।वैल या सांढके पीठके ऊपरके भागको भी ककुप कहते हैं क्योंकिउसका भी बीचकाभाग उभरा होता है। यहां दोन में सादृश्य स्पष्ट है।१२ दस्युका अर्थ अवर्षण है। अवर्षणमें रस नष्ट हो जाते हैं। पुन दस्यु शब्दके सम्बन्धमें कहा गयाहै कि अवर्षण सभीशुभ कर्मोकोनष्ट
३६६ सवाति विद्वान और आचार्य यास्क