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जा सकता है। अनेक निर्वचनोंकी उपस्थिति विविध अर्थके परिणाम हैं। (१५) हस्त :- हस्त का अर्थ हाथ होता है। यास्कका कहना है कि हनन् क्रियामें शीघता करने के कारण ही हस्त कहा जाता है-'हस्तोहन्ते: प्राशुर्हनने ४१ हस्त शब्द हिंसार्थक हन् धातु से बना है। इस निर्वचनमें ध्वन्यात्मक संगति पूर्ण स्पष्ट नहीं है। संभवत: वैदिक कालमें हाथका प्रयोग हिंसाके लिए अधिक होता होगा। व्याकरणके अनुसार हस् विकासे धातुसे तन् प्रत्यय कर हस्त शब्द बनाया जा सकता है। (१६) बृहत् :- इसका अर्थ होता है महान्, बड़ा। यास्कके अनुसार यह दृढ़ या मजबूत है इसलिए इसे बृहत् कहते हैं-'परिवृढं भवति'४१ इस निर्वचनके अनुसार बृहत् शब्द में बृह वृद्धौ धातुका योग है। क्योंकि बृह+ क्त = बृढः होता है। यद्यपि यास्कने बृहत् शब्दके धातुका निर्देश स्वतंत्र रूपमें नहीं किया है, मात्र वे इसके अर्थको ही स्पष्ट करते हैं। तथापि परिवृढः शब्द बृह धातुकी ओर संकेत करता है। इस आधार पर इसका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त है। अर्थात्मक औचित्य भी स्पष्ट है। बृहत् का अर्थ आज मी सुरक्षित है। व्याकरणके अनुसार भी यह शब्द बृह् वृद्धौ धातुसे निपातनके द्वारा सिद्ध होता है।४५ (१७) वीर :- इसका अर्थ वलवान होता है। इसके संबंध यास्कका कहना है कि वह अमित्रों (शत्रुओं) को नष्ट करता है- 'वीरो वीरयति अमित्रान्' वेते वा स्याद्गतिकर्मणः, 'वीरयतेर्वा ४६। वीरयति शब्दसे स्पष्ट है कि इसमें वि + ईर गतौ धातु है। वि + ईर = वीर। वेतेर्वा इत्यादि गत्यर्थक वी धातु की ओर संकेत करता है क्योंकि वीर शत्रुओं के सम्मुख अभिगमन करता है। अन्तिम निर्वचन वीरयते से वीर् विक्रान्तौ धातु स्पष्ट है। इसके अनुसार इसका अर्थ होगा- वीर पुरुष वीरता का आचरण करता है। वीर शब्दके लिए निरुक्तमें तीन निर्वचन उपलब्ध होते हैं। १- वि+ ईर,२- वी गतौ,३. वीर विक्रान्ती। इन निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इन्हें संगत माना जाएगा। व्याकरणके आधार पर वीर शब्द वीर विक्रान्तौ धातुसे अच् प्रत्यय लगाकर या वि + ईर् गतौ +कः प्रत्यय८ से या वी +र६९ प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। यास्कके तीनों निर्वचन व्याकरण प्रक्रियाके अनुकूल हैं। (१८) सीमा:- सीम् एक निपात है जो परिग्रह (सर्वत्र) अर्थ में या पदपूर्ति के लिए प्रयुक्त होता है। सीम शब्द में अ (सीम् + अ = सीम) अनर्थक है। सीमन् शब्द से सीम-सीमा शब्द बनता है। यास्कने सीमाका अर्थ मर्यादा किया है-'सीमा मर्यादा,
१२७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क