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कहीं कमनीयं के स्थान पर गमनीयम् शब्द भी देखा जाता है। इसके अनुसार वह गमनीय अर्थात् प्रार्थनीय शब्दका उच्चारण करता है।
औपमन्यवका यह विचार कि शकुनिके नाम शब्दानुकृति पर आधारित नहीं, आंशिक सत्य है। कुछ पक्षियों के नाम शब्दानुकृति पर आधारित न होकर अन्य आधारसे युक्त हैं। वे आधार कर्म, रूप, गुण, सादृश्य आदि हो सकते हैं। स्वयं यास्कने ही पक्षियोंके नाम निर्वचनमें शब्दानुकृतिको स्वीकार किया है। इस प्रसंग में काक शब्दके निर्वचनको पूर्व ही प्रदर्शित किया जा चुका है।
अन्य भाषाओंमें भी पक्षियोंके नाम शब्दानुकृति पर आधारित प्राप्त होते हैं। अंग्रेजीका ण्दै चीनी भाषाका मिआऊ, अंग्रेजीका कक्कु आदि शब्दों में शब्दानुकृति ही है।" कृक्, कृक् शब्द करनेके कारण कृकवाकु तथा तित् तित् शब्द करनेके कारण तित्तिरि शब्दमें शब्दानुकृति स्पष्ट है।
यास्कने कितव शब्दके निर्वचनमें कहा है- कितवः किं तव अस्तीति शब्दानुकृति : ७ कितवका अर्थ होता है जुआ । इसमें जुआरी आपसमें पूछते हैं-किं तव अस्ति किं तव अस्ति (तेरे पास क्या है, तेरे पास क्या है) यही कित्तव कितव हो गया। जज्झती : शब्दके निर्वचनमें - जज्झतीरापो भवन्ति शब्दकारिण्यः जज्झती जलका वाचक है तथा यह शब्दानुकृति पर आधारित है। जब जल वरसता है तब जज्झ जज्झ शब्द होता है इस शब्दानुकरण पर ही जज्झती: शब्द बना । दुन्दुभि: एक वाद्यका नाम है। यास्क इसके सम्बन्ध में कहते हैं - दुन्दुभिरिति शब्दानुकरणम्, दुन्दुभ्यतेर्वा स्याच्छन्दकर्मणः९ अर्थात् दुम्, दुम् शब्द करनेके कारण दुन्दुभि नाम पड़ा। दुन्दुभि बजाने पर इससे दुम् दुम् की ध्वनि निकलती है अथवा शब्दार्थक दुन्दुभ्य धातुसे दुन्दुभि शब्द बना है।
उपर्युक्त विवेचनोंसे स्पष्ट है कि यास्क कुछ शब्दोंके निर्वचनमें स्पष्ट ही शब्दानुकरणके आधारको अपनाते हैं। संस्कृत साहित्यमें बहुत सारी क्रियाएं प्रचलित हैं जो ध्वन्यनुकरण पर ही आधारित हैं। खट्खटायते आदि क्रिया पदमें खट्-खट् ध्वनि करनेकी प्रधानता स्पष्ट है।
-: सन्दर्भ संकेत :
१. निवासात् कर्मणो रूपान् मंगलाद्वाच आशिषः । यदृच्छयोपवसनात् तथाऽऽमुष्यायणाच्च यत् ॥ वृ. दे. १२५, २. नि. ३।४, ३. स हि काकु काक्विति वाश्यते तस्मात्स काक इत्युच्यते नि .दु.वृ. ३।४, ४ . नि. ३४, ५. नि. ३ ४, ६ .
११४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क