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शब्दोंके लिए भी यहीं तर्क उपयुक्त होगा कि सारे शब्द यास्कके समय तो प्रचलित होंगे लेकिन पाणिनिके समय लुप्त हो गये होंगे।
निरुक्तमें सूर्याको 'सूर्यस्य पत्नी' कहा है । १° सामश्रमी जी का कहना है कि पाणिनीय व्याकरणके आधार पर सूर्य शब्दसे उक्त अर्थ में सूरी शब्द बनता है। यदि पाणिनि यास्कसे अर्वाचीन होते तो सूर्या शब्दके लिए अवश्य ही कोई सूत्र का विधान करते। बादमें वार्तिककारने ऐसा किया भी है । ११ इस मक्के सम्बन्ध में कहा जा सकता है कि उक्त अर्थ में सूर्या का प्रयोग वैदिक प्रयोग है जो यास्कसे बहुत पूर्व का है। १२ यास्क उस शब्दको मात्र पूर्ण स्पष्ट करते हैं। इससे यास्क की अर्वाचीनता प्रमाणित नहीं होती।
'परः सन्निकर्षः संहिता' के सम्बन्ध में भी सामश्रमी जी का कहना एकदम निराधार है कि यास्कने इसे पाणिनिसे ग्रहण किया। ज्ञातव्य है व्याकरण का प्रादुर्भाव पाणिनिसे बहुत पूर्व ही हुआ है। १३ स्वयं आचार्य पाणिनिने ही अपनी अष्टाध्यायीमें अपने से पूर्ववर्ती कई वैयाकरणोंके नामका उल्लेख किया, जो पूर्व प्रतिपादित है। यास्कके पहले भी वैयाकरणोंके सम्प्रदाय थे जैसा कि निरुक्तमें भी उल्लेख प्राप्त होता है। अतः यह सूत्र क्या यास्क के पूर्ववर्ती वैयाकरणोंका नहीं हो सकता, जिनका नाम स्वयं पाणिनि भी लेते रहे हैं। पुनः यह सोचा जाय कि पाणिनि पर ही यास्कके इस सूत्र का प्रभाव है, तो कौन सा अनौचित्य होगा।
अगर पाणिनि यास्कसे पहले होते तो यास्क पाणिनिका भी नाम अपने निरुक्तमें अवश्य लेते। वे पूर्व के वैयाकरणोंमें गार्ग्य आदि का नाम बड़ी श्रद्धा के साथ लेते हैं । १४ 'आस्यदध्नाः' शब्द पाणिनि के 'प्रमाणेद्धयसज् दध्नमात्रच : १५ इस सूत्रसे दध्नच् प्रत्यय करने पर सिद्ध हो जाता है। ज्ञातव्य है, यास्कने 'दध्न' को प्रत्यय नहीं मानकर 'दध्न' शब्दका निर्वचन किया है- 'दध्नं दध्यतेः स्रवति कर्मण: ११६ अगर पाणिनि यास्कसे पहले होते तो निश्चिय ही यास्कको पाणिनिके उपर्युक्त सूत्रकी आवश्यकता पड़ती और उस पर पाणिनि कालीन प्रत्ययको शब्द मानकर निर्वचन नहीं करते।
यास्कने पदको चार भागोंमें विभक्त किया है, नाम; आख्यात, उपसर्ग और निपात। पाणिनि पदके दो ही भेद मानते हैं, सुबन्त, तथा तिङन्त १७ पाणिनिने अव्यय को सुबन्तका ही एक भेद माना है जबकि यास्क ऐसा नहीं करते। अगर यास्क पाणिनिसे बाद होते तो पाणिनिके इस प्रभावसे अवश्य प्रभावित होते।
पाणिनिको यास्कसे प्राचीन माना जायतो पाणिनिके लगभगचार हजारसूत्रों एवं
७६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क